कुछ ऐसा हुआ ख़ास इस
बेखबर दिल के साथ
ओस की ठहरी बूँद की तरह तर्रनुम लिए,,,
उस तब्बसुम से मुलाक़ात हुई...
..जादूगरी का तिलस्म था उसकी बातों में;
या कोई एहसास-ए-कशिश उसकी आँखों में
लगा, 'खामोशी से अल्फ़ाज़ों में बाँधे जा रहा हो!
कब ,,कोई उस बिखरी आस, ख्वाबों को
उस तन्हाई ,,उस ना-उम्मीदी को,..
रेशम के तारों से सुलझाता जा रहा हो,,,;
..कि बीते सवालों में भरी उन रंजिशों को
,आधी अधूरी ,,,उन ख्वाइशों को ..;
धीमे अंदाज़ से मेरी ज़िंदगी में पिरो रहा हो !
अक्सर जो निकलती रही आह जो गुज़री यादों की
ओस की ठहरी बूँद की तरह तर्रनुम लिए,,,
उस तब्बसुम से मुलाक़ात हुई...
..जादूगरी का तिलस्म था उसकी बातों में;
या कोई एहसास-ए-कशिश उसकी आँखों में
लगा, 'खामोशी से अल्फ़ाज़ों में बाँधे जा रहा हो!
कब ,,कोई उस बिखरी आस, ख्वाबों को
उस तन्हाई ,,उस ना-उम्मीदी को,..
रेशम के तारों से सुलझाता जा रहा हो,,,;
..कि बीते सवालों में भरी उन रंजिशों को
,आधी अधूरी ,,,उन ख्वाइशों को ..;
धीमे अंदाज़ से मेरी ज़िंदगी में पिरो रहा हो !
अक्सर जो निकलती रही आह जो गुज़री यादों की
वो टूटती-जुड़ती दिल की पैबन्दकारी को ..
वो अपनी उस निगाह-ए-नाज़ से बहला रहा हो !
सदियों से ठहरी उन तमाम हवाओं का रुख़
उम्मीदों से परे 'सरगोशियों में ख़ुशनुमा सा लगे ..;
कि दिल जो कभी तरसा जिस रहगुज़र के लिए
सदियों से ठहरी उन तमाम हवाओं का रुख़
उम्मीदों से परे 'सरगोशियों में ख़ुशनुमा सा लगे ..;
कि दिल जो कभी तरसा जिस रहगुज़र के लिए
आती रुत में जाने कितने बहानो से तार्रुफ़ कराने जा रहा हो.........