Wednesday, August 12, 2015

बीते दिनों से वो सिमटे अलफ़ाज़ नहीं मिल रहे थे,
कोई तर्क, कोई हलचल नहीं...
रही तो बस! एक बेचैनी , एक पूर्ण विराम...!
....उस खुले दरवाज़े की तरह..;
ड्योढ़ी पे नज़रें जहाँ दायें-बाएं रखी रही कई सालों से
वो खुला दरवाज़ा आज तलक ना ढुकाया हमने,
बरसों कानों को एक आहट सुनने का इंतज़ार रहा;
...'आज एक और सामान बंधा...;
मुक़ाम पे अपने लिए कर गुज़रने को तैयार हुआ वो
‘वो जो फ़ागुन में बौछारों की तरह साथ रहा मेरे..  
एक सर्द-गर्म  की धूप छाँव  लिए
हज़ारों यादें गुज़रे सालों की अब सिरहाने छोड़े
तमाम ख्वाइशों की मुठ्ठी को उस दहलीज़ पे  लिए ..,
वो जहाँ से बरसों से हवा आर-पार हो रही थी...
आज वहीँ तैयार खड़ा है वो...
आज मन नहीं है मेरा...;
फिर भी हाथ पकड़,..मंज़िल को रुख किया ..;
..'कहा...'मुड़ कर देखते रहना इस पार..;
कि जब भी इस राह से गुज़रूँगा..,
.....'हरदम ये नम आँखें,,, रुकी जुबां..
'एक कसक,,'उम्मीदों से परे एक एहसास दिलाती रहेगी..,
.............इस खुले दरवाज़े का....!!!

12 comments:

  1. SPEECHLESS........

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  2. Samjhe the saath dega kisi ka suhana gham, khuli jo nazar to dekha tanhaa khade hain hum...

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    1. Shukriya Janaab for appreciate and for beautiful lines too
      Do keep in touch further Pradeep ji!!

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  3. पढ़ कर एसा लगा की दरवाजे के इसपार और उसपार दो अलग अलग जहाँ हैं। और दोबारा पढ़ा तो वो दरवाजा नहीं एक संकरी गली महसूस हुई। और कभी लगा की ये दरवाजा भी नहीं है, एक झरोखा है जहाँ एक पार तो दिखाई दिया लेकिन भीतर की और नहीं।

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    1. Well, Rajee ji aap kisi bhi nazriye se mehsoos karo,,, haan ek kaita mein kaafi bhawnaayein chhupi hoti han!!!
      Thanks for appreciate it in many ways,,,do keep in touch furtehr
      ritu

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  4. nabiullah.8143@gmail.comDecember 24, 2015 at 10:54 AM

    Heart touching lines Rituji

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  5. Shukriya sir
    N sorry for late reply
    Do keep in touch further

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  6. Wow.... jo shabdon se bayan na ho

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  7. Ek tu ek tera gum zindagi mey kum naa they
    Adhoori is prem kahani mey Kabhi tum to kabhi hum naai they...


    Inspired by you ritu ji

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