आज ना जाने कैसे हक़ीक़त से मुलाक़ात हुई...;
पहले कुछ बात
हुई …..फिर कुछ आग़ाज़ हुई !
ऐसा लगा तन्हाई में वो,'गुलज़ार की उस खोई इलायची-सा;
जिसे शायद हम कहीं बे-तक्क्लुफ़ी में रख के भूल गए ,,,
वो जिसके
मिलने से हुई खोये हुए अल्फ़ाज़ों में हलचल..;
वो जो ठहरी उस नमी पे यूँ गुज़र जाए....!
खुदा' जाने कौन सी कशिश दिखी दिन की गुफ्तगु में..,
खुद से भी छेड़ा ज़िक्र ,तो ख़ामोशियाँ ख़ूब इतरायीं .!
अभी बे-ख़्याली,बहुत अगर-मगर,क़ाश के साये में है मेरे वो;
दिमाग की ख़लिश
लिए, कभी लगता है इक ताबीर-सा वो,
यूँ जो सुनाया हमने गुज़रा रूदाद-ए-सफर…,
कह रहा
है दिल 'उम्मीदों से परे, ये आज..,
....कब हम
संवर जाए और ये अश्क सिमट जाएँ..!!!
Happy Woman’s DayJ