आज ना जाने कैसे हक़ीक़त से मुलाक़ात हुई...;
पहले कुछ बात
हुई …..फिर कुछ आग़ाज़ हुई !
ऐसा लगा तन्हाई में वो,'गुलज़ार की उस खोई इलायची-सा;
जिसे शायद हम कहीं बे-तक्क्लुफ़ी में रख के भूल गए ,,,
वो जिसके
मिलने से हुई खोये हुए अल्फ़ाज़ों में हलचल..;
वो जो ठहरी उस नमी पे यूँ गुज़र जाए....!
खुदा' जाने कौन सी कशिश दिखी दिन की गुफ्तगु में..,
खुद से भी छेड़ा ज़िक्र ,तो ख़ामोशियाँ ख़ूब इतरायीं .!
अभी बे-ख़्याली,बहुत अगर-मगर,क़ाश के साये में है मेरे वो;
दिमाग की ख़लिश
लिए, कभी लगता है इक ताबीर-सा वो,
यूँ जो सुनाया हमने गुज़रा रूदाद-ए-सफर…,
कह रहा
है दिल 'उम्मीदों से परे, ये आज..,
....कब हम
संवर जाए और ये अश्क सिमट जाएँ..!!!
Happy Woman’s DayJ
अतिसुंदर।।।
ReplyDelete.... thanks Anurag.
DeleteBahut khoob likha
ReplyDeleteShukriya...@RakeshJi
DeleteBe in touch with posts further!
Bahut khoob dikhti ho bahut khoob likhti ho..
ReplyDelete..... tumhare jaise doston ki sangat ka asar hai😘😘💃🏾
Deleteवाह! खोये हुए अल्फाज़ो में हलचल और खवमोशियाँ भी इतराई। कितना सजीव एवम संगीतमय लेखन।
ReplyDeleteShukriya Rajeev ji, kaafi arse baad lekhni uthaai hai so alfaaz bhi itraate huey halchal hi karengey... do keep in touch further🙏🏻
DeleteBeautiful lines with deep meaning...
ReplyDelete.... Thnks darling for appreciated.😘😘 keep in touch further.
DeleteAwesome lines and very meaningful
ReplyDeleteThanks for appreciation the words in between the lines... so keep in touch dost !!
DeleteWah wah kya baat hai
ReplyDeleteLovely
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