Tuesday, August 12, 2025

 "मै किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहां सब के सर पे सलीब है" 
कहते हैं दिल्ली दिल वालों की है,
पर शायद अब महसूस ही नहीं होती।
कोशिशों के बावजूद भी पौने दो करोड़ आबादी मे
 कोई एक अपने जैसा ना टकराया
 
जिस पे हर वक़्त-बेवक़्त हक़ जताया जाता 🤔
हर तरफ़ दरवाज़े या तो बंद मिले हैं या मृत पुतलियों की तरह खुले,
हर सफ़र शुरू होने से पहले ख़त्म की कग़ार पे रहे है….
जिस चीज़ को छू लेने तक का साहस किया या अपना बनाना चाहा
वो मेरे ऊपर ही क़हर-सा ही करती रही
अब कहाँ,कितने और किस पर लफ्ज़ ज़ायर करें,
….सहारे की कैसी भी तलाश,
मुझे छोटा और कमज़ोर बना जाती है,
कमज़ोर तो हूँ ही नहीं मैं ,
फिर क्यूँ महसूस भी होने दूँ?
तलाश ज़ारी रखती हूँ फिर
मगर अब सिर्फ़ ख़ुद कश्मकश की,
अलग पहचान...एक अलग शहर में ,
कुछ चुनिंदा दोस्तों की यादे,अपनों की यादें-बातें लिए
और अपनी दिल्ली से अब तक के कई सबक लिए ,,
एक सुकून की तलाश में---
अब एक मुस्कान, पहले जैसी चमक और वो सुकून लाना है
जो गए बरसों दिल्ली में कब गायब हो गया।
कहते हैं ना,‘ ढूंढ़ने से तो ख़ुदा भी मिल जाता है ,ये तो फिर भी सुकून है 
अब या तो ’ख़ुदा में ही सुकून छिपा है या ‘वो ख़ुद ही एक सुकून है 🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️
उम्मीदों से परे' अब ये खलिश ख़त्म ही करनी है....!!


Wednesday, April 14, 2021

मुझे किश्तों में नहीं जीना अब..,
किश्तों में तो बे-शुमार ज़िंदगी बसर की ;
जो किताबों-उपन्यासों  में जो लिखा-पढ़ा ..,
वो प्यार करना भी पसंद नहीं है अब..
वो जो अलफ़ाज़ लिखते वक़्त किसी का तस्सवुर हो
जिसमें रज़ामंदी हो ,आशिक़ी हो....;
जो बे-ख़लूस ,और कभी बे-मतलब  हो...,
......अब वो बे-हिसाब इश्क़ चाहिए !!
मुझे उस  प्यार का ख़्याल नहीं ,....
वो जिसके ख्याल में हरदम बे-ख्याल रहूँ
वो पंखों की उड़ान  लिए   ....;
वो बे-परवाह ,...'मीरा जैसा इश्क़ चाहिए !!
तोहफे में कोई चीज़ नहीं
जो बे-मिसाल, बेशकीमती हो
वो क़ुरबत में सिर्फ एहसास चाहिए
ऐसा वक़्त-बे-वक़्त का इश्क़ चाहिए !!!
कभी जब जो टूट  के बिखरूँ मैं
तो किसी के चुराए बे-सबब पलों के साथ
बिना रंज़िशें-बंदिशों और उम्मीदों से परे
.....वो  बे-बाक़ इश्क़ लिए   
अपने होठों पे बे-हिसाब हँसी चाहिए ..;
...'मुझे अब प्यार नहीं ,.... 'इश्क़ चाहिए.....!!!

  

Monday, March 8, 2021


आज ना जाने कैसे हक़ीक़त से मुलाक़ात हुई...;

पहले कुछ बात हुई …..फिर कुछ आग़ाज़ हुई !
ऐसा लगा तन्हाई में वो,'गुलज़ार की उस खोई इलायची-सा;
जिसे शायद हम कहीं बे-तक्क्लुफ़ी में रख के भूल गए ,,,
वो जिसके मिलने से हुई खोये हुए अल्फ़ाज़ों में हलचल..;
वो जो ठहरी उस नमी पे यूँ गुज़र जाए....!
खुदा' जाने कौन सी कशिश दिखी दिन की गुफ्तगु में..,
खुद से भी छेड़ा ज़िक्र ,तो ख़ामोशियाँ  ख़ूब  इतरायीं .!
अभी बे-ख़्याली,बहुत अगर-मगर,क़ाश के साये में है मेरे वो;
दिमाग की ख़लिश लिएकभी लगता है इक ताबीर-सा वो,
यूँ जो सुनाया हमने  गुज़रा रूदाद-ए-सफर…,
कह रहा है  दिल  'उम्मीदों से परे, ये आज..,
....कब हम संवर जाए और ये अश्क सिमट जाएँ..!!!

           Happy Woman’s DayJ

Friday, March 20, 2020


मैं अब कुछ कहने से डरने लगा हूँ        
शब्द….,जो ज़हन में रखकर
करते रहते हैं हलचल,,,
हलचल एक उस बहती नदी की तरह
कितना शोर होता है उसमें,,,,,
उस शोर से डरने लगा हूँ।।।।
मैं अब कुछ कहने से क़तराने लगा हूँ
बिना कहे भी तो बहुत कुछ होता है
जो चुपचाप अंदर बहता है
जिसमें बीती हवाओं की रुख़ से,
...एक हरी-सी शाख़ रहती है;
चुपचाप उस हवा की खुशबु तरह शांत,सोम्य,
जो सिर्फ,एक यकीं ,एक एहसास लिए ..;
...
आँखों में,,नूर  दे जाता  है
नूर,एक  सुकून का,'एक अनकही ख़ामोशी का;
'उम्मीदों से परेतमाम लकीरों के इज़ाफ़े लिए 
फ़िर , अब शब्दों से ही होगा सिर्फ खेलना,,,
क्यूंकि,मैं अब कुछ कहने से डरने लगा हूँ…..!!!