किश्तों में तो बे-शुमार ज़िंदगी बसर की ;
जो किताबों-उपन्यासों में जो लिखा-पढ़ा ..,
वो प्यार करना भी पसंद नहीं है अब..
वो जो अलफ़ाज़ लिखते वक़्त किसी का तस्सवुर हो
जिसमें रज़ामंदी हो ,आशिक़ी हो....;
जो बे-ख़लूस ,और कभी बे-मतलब हो...,
......अब वो बे-हिसाब इश्क़ चाहिए !!
मुझे उस प्यार का ख़्याल नहीं ,....
वो जिसके ख्याल में हरदम बे-ख्याल रहूँ
वो पंखों की उड़ान लिए ....;
वो बे-परवाह ,...'मीरा जैसा इश्क़ चाहिए !!
तोहफे में कोई चीज़ नहीं
जो बे-मिसाल, बेशकीमती हो
वो क़ुरबत में सिर्फ एहसास चाहिए
ऐसा वक़्त-बे-वक़्त का इश्क़ चाहिए !!!
कभी जब जो टूट के बिखरूँ मैं
तो किसी के चुराए बे-सबब पलों के साथ
बिना रंज़िशें-बंदिशों और उम्मीदों से परे
.....वो बे-बाक़ इश्क़ लिए
अपने होठों पे बे-हिसाब हँसी चाहिए ..;
...'मुझे अब प्यार नहीं ,.... 'इश्क़ चाहिए.....!!!