रिश्ते,...अपने इर्द-गिर्द के रिश्ते,... कुछ दूर के कुछ पास के…..सिर्फ हमारे.. लेकिन...,,,,,.....
जिंदगी भर कुछ अजीब सा ही रिश्ता रहा-सिर्फ अपनों से,...
बेवजह नफरत - कभी वजह न मिली, न अपनेपन का एहसास.!
किसी अपने के किये वो उम्मीद से परे वादों की ऋतु अलविदा हुई.....
हर बात कहने - सुनने, रूठने - मनाने को जैसे चुप सी लग गयी.!!
मिलना- बात करना तो अब दिन के ख़्वाबों में ही रह गए,,
वो दिल के रिश्ते तो बस अब यादों और कागजों में ही रह गए!
शायद जहाँ रिश्तों में गरमाहट और जटिलता ना हो,,,
वहां, अपने दिखते तो हैं, पर अपनापन नहीं दिखता ????
अब तो, जब कभी भी चोट और दर्द का एहसास होता है,...
तब यही लगता है कि, इस भीड़ में कोई अपना जरुर है!!!
तो तुम सब अपनों को ‘अपना’ ना कहूं ‘तो और क्या कहूं??..
क्योंकि एक साथ इतने दर्द में भी... मुस्कुराना तक सिखा दिया.!!!!
जिंदगी भर कुछ अजीब सा ही रिश्ता रहा-सिर्फ अपनों से,...
बेवजह नफरत - कभी वजह न मिली, न अपनेपन का एहसास.!
किसी अपने के किये वो उम्मीद से परे वादों की ऋतु अलविदा हुई.....
हर बात कहने - सुनने, रूठने - मनाने को जैसे चुप सी लग गयी.!!
मिलना- बात करना तो अब दिन के ख़्वाबों में ही रह गए,,
वो दिल के रिश्ते तो बस अब यादों और कागजों में ही रह गए!
शायद जहाँ रिश्तों में गरमाहट और जटिलता ना हो,,,
वहां, अपने दिखते तो हैं, पर अपनापन नहीं दिखता ????
अब तो, जब कभी भी चोट और दर्द का एहसास होता है,...
तब यही लगता है कि, इस भीड़ में कोई अपना जरुर है!!!
तो तुम सब अपनों को ‘अपना’ ना कहूं ‘तो और क्या कहूं??..
क्योंकि एक साथ इतने दर्द में भी... मुस्कुराना तक सिखा दिया.!!!!