इश्क क़ज़ा है, सज़ा है, बला और जूनून भी है इश्क......
खुद और खुदा से इबादत की तरह है ये इश्क…,,,तब भी बे-सुकून हकीकत में सब ये किये जा रहे हैं और कहे भी जा रहे हैं,,,,!!!और कभी बे-ख्याली, बे-ध्यानी में ये एकतरफ़ा हो,.....तो लाइलाज़ है ये इश्क!!!
फिर,ज़हन में सिर्फ सवालों की नादानी .....कि ,;;
"ये इश्क तबाह कर गया तो फिर????
ये खुद अपने पर किये ज़ख्म ना धुल सके तो फिर????
उस परछाईं के लिए ज़ज्बा भरा ये दिल,,,;
ना-उम्मीद और जूनून में हो गया तो फिर????
जिससे अभी सिर्फ आँखों में ही मिली हूँ,,,,
वो हकीकत में मिल गया तो फिर????
गर, तमाम उम्र के लिए वो हसीं दर्द,...
उसकी तरफ से हमेशा मिल गया तो फिर???
कभी आज तक ज़हन उससे कोई सवाल भी न कर सका,,,,
इत्तफाक से मेरे सवालों का जवाब मिल गया तो फिर???
उस परछाईं के लिए ज़ज्बा भरा ये दिल,,,;
ना-उम्मीद और जूनून में हो गया तो फिर????
जिससे अभी सिर्फ आँखों में ही मिली हूँ,,,,
वो हकीकत में मिल गया तो फिर????
गर, तमाम उम्र के लिए वो हसीं दर्द,...
उसकी तरफ से हमेशा मिल गया तो फिर???
कभी आज तक ज़हन उससे कोई सवाल भी न कर सका,,,,
इत्तफाक से मेरे सवालों का जवाब मिल गया तो फिर???
क्योंकि, फिर कहाँ हौसला रहता है,…किसी को भुलाने का ....
सदियों का 'उम्मीदों से परे' पले जूनून का लम्हों में सुकून कहाँ ????????