कल रात..अचानक तब्ब्सुम से मुलाकात हुई..,
अंदाज़ा कुछ ऐसा,,'हर पल तक हुआ..;
..कि जादूगरी थी या कोई कशिश उसमें.;
..या फिर एहसासों का तिलस्म मुझमें ;
कि,'कोई अल्फ़ाज़ों की डोर में बाँध रहा हो!!
जैसे कि,बिखरी हुई आस पे कब से...,,
रेशम की तरह कहानी कह रहा हो!!!
जैसे कि बीती यादों, दर्द ,सवालों में उलझी..;
हर रंजिश पिरो-पिरोकर सुलझा रहा हो!!
…कि छम से उन अल्फ़ाज़ों के तिलस्म में;
दिल की हर गिरफ्त-ए-ख़लिश मिटा रहा हो!!
अक्सर निकलती थी 'आह की सदा' दिल से;;
वो इस एक निगाह-ए-नाज़ को बहला रहा हो!!
भूले से ठहरी उन तमाम खुशनुमां हवाओं के रूख़;
उम्मीदों से परे'..ख़ामोशी में भी अब तक जैसे कोई गुनगुना रहा हो.........!
अंदाज़ा कुछ ऐसा,,'हर पल तक हुआ..;
..कि जादूगरी थी या कोई कशिश उसमें.;
..या फिर एहसासों का तिलस्म मुझमें ;
कि,'कोई अल्फ़ाज़ों की डोर में बाँध रहा हो!!
जैसे कि,बिखरी हुई आस पे कब से...,,
रेशम की तरह कहानी कह रहा हो!!!
जैसे कि बीती यादों, दर्द ,सवालों में उलझी..;
हर रंजिश पिरो-पिरोकर सुलझा रहा हो!!
…कि छम से उन अल्फ़ाज़ों के तिलस्म में;
दिल की हर गिरफ्त-ए-ख़लिश मिटा रहा हो!!
अक्सर निकलती थी 'आह की सदा' दिल से;;
वो इस एक निगाह-ए-नाज़ को बहला रहा हो!!
भूले से ठहरी उन तमाम खुशनुमां हवाओं के रूख़;
उम्मीदों से परे'..ख़ामोशी में भी अब तक जैसे कोई गुनगुना रहा हो.........!