Friday, January 24, 2014

कल रात..अचानक तब्ब्सुम से मुलाकात हुई..,
अंदाज़ा कुछ ऐसा,,'हर  पल तक हुआ..;
..कि जादूगरी थी या कोई कशिश उसमें.;
..
या फिर एहसासों का तिलस्म मुझमें ;
कि,'कोई अल्फ़ाज़ों की डोर में बाँध रहा हो!!
जैसे कि,बिखरी हुई आस पे कब से...,,
रेशम की  तरह कहानी कह रहा हो!!!
जैसे कि बीती यादों, दर्द ,सवालों में उलझी..;
हर रंजिश पिरो-पिरोकर सुलझा रहा हो!!
कि छम से उन अल्फ़ाज़ों के तिलस्म में;
दिल की हर गिरफ्त--ख़लिश मिटा रहा हो!!
अक्सर निकलती थी 'आह की सदा' दिल से;;
वो इस एक निगाह--नाज़ को बहला रहा हो!!
भूले से ठहरी उन तमाम खुशनुमां हवाओं के रूख़;
उम्मीदों से परे'..ख़ामोशी में भी अब तक जैसे कोई गुनगुना रहा हो.........!

6 comments:

  1. Beautiful....Superb wrds Ritu ji !!

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  2. Ek pakiza ruh ke damam se nikali hui khusbu jese hava me bikher di ho..
    aur nase mann me jese koi badal baras ne ki taiyari kar raha ho.. esa lag raha he.. apke in khayal_e_bato se.

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    1. Thanks Gauri,...for lovely appriciation.....and for being regular reader of my post...do keep in touch....take care Regds

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  3. Nigah- e-naaz ....wallah !!!!! aapka andaaz-e-bayan aapko anayaas he Nigah-e-naaz kee upaadhi dene k kaabil banata hai....bahut umda bayan-e-khayaaal hai..

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    1. Nigah_e_Naaz .. Ki upaadhi ke bare me hame kuch pata nahi..
      hame bas urdu ka saukh he to hum apne labzo me baya karne ki har mumkin kosis karte he madhumita ji.

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