आज बेवज़ह जो हँसे..,गुज़री बातों पे अपनी..
जाने नादानी इस दिल की थी,'या भूल हुई कोई कहीं;
कि,..आँखों से छलक आये आंसू अभी अभी....!!
चले थे घर से महफूज़ जानशीं सुकून के वास्ते,.
लगता है कि खो गयी है ज़माने में शराफत अब सभी!
..खाएंगे फिर से फ़रेब,,सोचा था ना ऐसा कभी..;
फिर चोट खायी है दिल पे,...हुए वो सूखे ज़ख्म हरे.;
चिकने पत्थर पे अब के फिसल गए.. नहीं ठहरे
,,,
....छलके थे जो पलकों से अभी अभी...!!
हर बार कहते हैं...करते हैं बातें बड़ी बड़ी..,
धोखे की
शराफत में आ जाता है, कमबख्त जो कभी..;
.. नहीं करेंगे उस दिल के मशवरों पे अमाल अब कभी...!
उम्मीदों से परे’,..गुज़र गयी उम्र अब जिस तरह...
अब और धुंधली निगाहों से ना बयाँ हो पाएगी,,;
ऐतबार सिर्फ तेरा ही रह गया है धुँआ धुँआ सा..;
कुछ तो सुकून,वो ऐतबार दे ;'खुदा अपनी मौज़ूदगी का..;
साये में सिर्फ 'तेरे कटे ये रहगुज़र,,बची-कुची...हंसी खुशी.....!!!
Sunday, June 29, 2014
Wednesday, June 11, 2014
शाम के साये में ज़िंदगी अक्सर
लिपट जाती है,
आस, फिर एक सुबह का लम्हा घटा जाती है..!
गौर कर रहे हैं गए दिनों से...;
अफ़साना ढूंढ़ना चाहता है दिल किसी रहगुज़र से;
आस, फिर एक सुबह का लम्हा घटा जाती है..!
गौर कर रहे हैं गए दिनों से...;
अफ़साना ढूंढ़ना चाहता है दिल किसी रहगुज़र से;
ना जाने कौन सी आहटें बसीं हैं इन ख़्वाबों में..,
कि रातों को अचानक नींद सी उचट जाती है..!!
तारुफ़ जिन पलों का हम ज़िंदगी से ना कर सकें;
वो ख़ामोशी जिसे हंसी में ना उड़ा सके..;
ये दिल जो कभी रहा अपना हमदम,...
चुप गुम सा हो गया है,,'बोलना जिसका बाकी है!!
कहता है मेरा दिल...'मेरे एहबाब..;
हो कोई जो अब मेरे हर हाल से वाक़िफ़ हो..;
कोई,...'जो सुने मेरी उम्र भर का रियाज़ ...
सिमटे पलों की वो कहानी..'जो कहनी बाकी है.!!
उम्मीदों से परे' मुझे अब कोई तो ढूंढे..
...किसी की अब सोच-तलाश में रहे हरसूँ हम...
आते मौसम की रुत में जो दे सुकून हस्सास पल...
..आफ़ताब की तरह जिनका मुस्कुराना बाकी है..!!.
कुछ ही अल्फ़ाज़ों में समेटा है मैने इन असफ़ज़ाई ख़्वाबों को..;
कि,,'अभी ज़िंदगी की किताब में एहसासों की तफ़सीर बाकी है…!!
कि रातों को अचानक नींद सी उचट जाती है..!!
तारुफ़ जिन पलों का हम ज़िंदगी से ना कर सकें;
वो ख़ामोशी जिसे हंसी में ना उड़ा सके..;
ये दिल जो कभी रहा अपना हमदम,...
चुप गुम सा हो गया है,,'बोलना जिसका बाकी है!!
कहता है मेरा दिल...'मेरे एहबाब..;
हो कोई जो अब मेरे हर हाल से वाक़िफ़ हो..;
कोई,...'जो सुने मेरी उम्र भर का रियाज़ ...
सिमटे पलों की वो कहानी..'जो कहनी बाकी है.!!
उम्मीदों से परे' मुझे अब कोई तो ढूंढे..
...किसी की अब सोच-तलाश में रहे हरसूँ हम...
आते मौसम की रुत में जो दे सुकून हस्सास पल...
..आफ़ताब की तरह जिनका मुस्कुराना बाकी है..!!.
कुछ ही अल्फ़ाज़ों में समेटा है मैने इन असफ़ज़ाई ख़्वाबों को..;
कि,,'अभी ज़िंदगी की किताब में एहसासों की तफ़सीर बाकी है…!!
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