आज उम्मीदों से परे',उन्ही रिश्तों के नुक्क्ड़ पर ,,,,अपनों से परे अब अपना जहाँ बनाने का मन है,,,जिसमें अनकही,,अनछुए,,अनदेखी,,अनसुनी वो ज़ज़्बात और हकीकतें हो,,जो दो पल की ज़िंदगी में सुकून और मासूमियत बरकरार रखे.....
''कुछ दिनों से ज़हन में क्यों एक बेकरारी है.;
..ज़िंदगी के हर लम्हे के साथ, हर ख्वाब...;
..ज़िंदगी के हर लम्हे के साथ, हर ख्वाब...;
हकीकत के साथ बेख़बर मिलने की तैयारी है.!
हकीकत जो ख्वाब से परे है अभी...;
ख्वाब जो उड़ते धुंएँ की तरह लगे कभी..;..
अधूरे सपनो को मुठ्ठी में भरने की तैयारी है !
बस! और ना टूटे आँखों के संजोये ख्वाब..;
हकीकत जो ख्वाब से परे है अभी...;
ख्वाब जो उड़ते धुंएँ की तरह लगे कभी..;..
अधूरे सपनो को मुठ्ठी में भरने की तैयारी है !
बस! और ना टूटे आँखों के संजोये ख्वाब..;
उस बेकरारी को नहीं देंगे अब किश्तों में जवाब
ज़िंदगी को जिससे रूबरू मिलाने की तैयारी है !
धड़कता रहा दिल अक्सर जैसे परेशान हो सदा;
हरदम बेध्यानी,नुक्सान में जैसे जिया हो सदा.;
ज़िंदगी को जिससे रूबरू मिलाने की तैयारी है !
धड़कता रहा दिल अक्सर जैसे परेशान हो सदा;
हरदम बेध्यानी,नुक्सान में जैसे जिया हो सदा.;
अपने आप को अक्सर लापता रखता था जो...;
मुख़्तसर उसी दिल को अब आफ़ताब बनाने की तैयारी है!
वो अपनों की बेरुख़ी,खुश्क अल्फ़ाज़ों से अमानुष बन चुका हूँ मैं..;
जुबां से जज़्बातों की वज़ाहत करके हार चुका हूँ मैं...;
..बेवज़ह के उन इम्तहानों को नज़रंदाज़ करने की तैयारी है..!!
..'बात इतनी सी है कि शायद थक सा गया हूँ मैं..;
हरसूँ जज़्बातों की कश्मकश से भारी हो गया हूँ मैं.,
तन्हाईओं,,दर्द से दोस्ती कर,,ख़ुद बेख़ौफ़ हो चुका हूँ मैं...
..कि उम्मीदों,रिश्तों से परे' सिर्फ ख़ुद और 'खुदा से रफ़ाक़त की तैयारी है...!!!"
मुख़्तसर उसी दिल को अब आफ़ताब बनाने की तैयारी है!
वो अपनों की बेरुख़ी,खुश्क अल्फ़ाज़ों से अमानुष बन चुका हूँ मैं..;
जुबां से जज़्बातों की वज़ाहत करके हार चुका हूँ मैं...;
..बेवज़ह के उन इम्तहानों को नज़रंदाज़ करने की तैयारी है..!!
..'बात इतनी सी है कि शायद थक सा गया हूँ मैं..;
हरसूँ जज़्बातों की कश्मकश से भारी हो गया हूँ मैं.,
तन्हाईओं,,दर्द से दोस्ती कर,,ख़ुद बेख़ौफ़ हो चुका हूँ मैं...
..कि उम्मीदों,रिश्तों से परे' सिर्फ ख़ुद और 'खुदा से रफ़ाक़त की तैयारी है...!!!"
'रफ़ाक़त--'साझेदारी
'वज़ाहत--'सफाई( विवरण)