Wednesday, July 23, 2014

ज़िंदगी की कश्मकश ,रिश्तों की इनायतें ..;रिश्ते',जिन पर हमको ख़ुद से ज्यादा एतबार होता है,,'रिश्ते..;जो शुरू में तो मासूम होते हैं,अपने ऊपर निर्भर बना लेते हैं या कहिये तो,,हमको  भी फिर उनकी आदत  हो जाती है और जब वो गठित हो जाते हैं,,तो ना जाने अपनी गरिमा,मासूमियत कहाँ खो देते हैं,,अजीब-गरीब आकार के साथ,,,तब रिश्तों को हमारी निर्भरता ,दर्द ,मायूसी,तन्हाई और उम्मीद से भरी लम्बी कतार भारी-भरकम लगने लगती है.
आज उम्मीदों से परे',उन्ही रिश्तों के नुक्क्ड़ पर ,,,,अपनों से परे अब अपना जहाँ बनाने का मन है,,,जिसमें अनकही,,अनछुए,,अनदेखी,,अनसुनी वो ज़ज़्बात और हकीकतें हो,,जो दो पल की ज़िंदगी में सुकून और मासूमियत बरकरार रखे.....

''कुछ दिनों से ज़हन में क्यों एक बेकरारी है.;
..ज़िंदगी के हर लम्हे के साथ, हर ख्वाब...;
हकीकत के साथ बेख़बर मिलने की तैयारी है.!
हकीकत जो ख्वाब से परे है अभी...;

ख्वाब जो उड़ते धुंएँ की तरह लगे कभी..;..
अधूरे सपनो को मुठ्ठी में भरने की तैयारी है !
बस! और 
ना टूटे आँखों के संजोये ख्वाब..;
उस बेकरारी को नहीं देंगे अब किश्तों में जवाब
ज़िंदगी 
को जिससे रूबरू मिलाने की तैयारी है !
धड़कता 
रहा दिल अक्सर जैसे परेशान हो सदा;
हरदम बेध्यानी,नुक्सान में 
जैसे जिया हो सदा.;
अपने आप को अक्सर लापता रखता था जो...;
मुख़्तसर उसी दिल को अब आफ़ताब बनाने की तैयारी है!
वो अपनों 
की बेरुख़ी,खुश्क अल्फ़ाज़ों से अमानुष बन चुका हूँ मैं..;
जुबां से जज़्बातों की वज़ाहत करके हार 
चुका हूँ मैं...;
..बेवज़ह 
के उन इम्तहानों को नज़रंदाज़ करने की तैयारी है..!!
..'बात इतनी सी है कि शायद थक सा गया हूँ मैं..;
हरसूँ जज़्बातों की कश्मकश से भारी हो गया हूँ मैं.,
तन्हाईओं,,दर्द से दोस्ती कर,,ख़ुद बेख़ौफ़ हो चुका हूँ मैं...
..कि उम्मीदों,रिश्तों से परे' सिर्फ ख़ुद और 'खुदा से रफ़ाक़त की तैयारी है...!!!"


'रफ़ाक़त--'साझेदारी
'वज़ाहत--'सफाई( विवरण)


17 comments:

  1. hakikat se bhare tazurbe ke sath,behtareen darshaya aapne aur agey likhtey rahiye Mohtarma..

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  2. एक रति बिन एक रति के

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    1. although i didnt understand ur words,you written..but thnks for being in touch wid posts.

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    2. एक रति बिन एक रति के, संत समूह अनेक मति के ............अगर परमात्मा को एक रति भी ध्यान नहीं किया तो हम एक रति के है और मानने वाले और उनके मत बहुत है ...........तो अपनी मति से विचारो और भगवान का विचार होना बहुत ज़रूरी है कम से कम एक रातिभर तो उसका ध्यान करो

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    3. Bahut sundar vivran, thnks for explaining and I totally agree wid words,,sirf Eeshwar ke bin koi gati nahi hai,,,😊

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  3. Umar kitni Manzilein teh ker chuki,,
    DilL jaha Thehra, Thehra hi reh gya..!
    ...
    kafi accha khayal... padhne me accha laga..
    lekin Dohri baate mehsoos karna thoda muskil he..
    isme Risto ki bajah se confusion he...ya...Haqiqat jo dil_o_dimag par havi he, usse Risto par asar pada he?
    Umeed tiki hue Viswas par... par .. par.. Viswas karna Haqiqat, me kathin he."

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    1. Zindgi me waqt bhi leta hai karwatein kaise-kaise,,,Umar itni bhi nahi thee,jitne ke sabaq sikha jata hai... Gauri ur lines r realistc n awesome,.keep in touch further,,..n don't b confused by words,,,ye sirf waqt hi hota h Jo him par haavi hota h,,n later makes us strongest..😊

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  4. मुझ से कहती हैं खामोश निगाहें तेरी ...

    आ मुझ में उतर तुझको मैं इश्क सिखा दूं
    मेरी बाहों के दायरे में समा तो सही
    आ तुझे मैं अहसास-ऐ-मुहब्बत दिखा दूं
    हज़ारों ख्वाब हैं रखे मैंने संभाल के
    आ तुझे तेरे ख्वाबों से मिला दूं
    उतरा तेरे सीने का दर्द मेरे सीने में
    आ तुझे गले लगा ये दर्द मिटा दूं
    मुश्किलें दूर कर मैं दूं सारी
    आ खोयी मुस्कान वापस मैं दिला दूं.... - अज्ञात

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    1. Nice lines Mr Anonymous,for these lines i can say that,,."Tamasha roz Jo kartey hain wafaain ka, Zafaaon ka,,'Jo chhupkar war kartey ho ,,kya khaak mohbbat sikhaynge

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  5. दूर हूँ तुमसे पर दिल से दूरी नहीं, प्यार है तुमसे ये मेरी मजबूरी नहीं; तुम याद बहुत आते हो हर मोड़ पर, पर हमें तुम याद करो ये जरूरी तो नहीं| मेरे हाल पर उनका मुस्काना गजब था, बिना बात मुझे सताना गजब था; मिलने की बात पर बहाना बना गए, बिना वादे के उनका आना गजब था| **** बिन बात के ही रूठने की आदत है; किसी अपने का साथ पाने की चाहत है; आप खुश रहें, मेरा क्या है; मैं तो आइना हूँ, मुझे तो टूटने की आदत है।

    मैं तेरे एहसास से नाजाने कब मिल गया, और तेरी चाहत थी, मुझे भूलजाने की. मैं तेरे दामन में कुछ यूँलिपट गया, और तेरी चाहत थी, मुझसे दूर जाने की. मैं तेरी रूह में हर पल बस गया, और तेरी चाहत थी, गैरों केघर बसाने की. मैं तेरे हर लफ्ज़ में ग़ज़ल बन गया, और तेरी चाहत थी,दूसरों के गीत गुनगुनाने की. मैं तेरी बारिश में पतझड़ सा बन गया, और तेरी चाहत थी,सूखे में रह जाने की. मैं तेरी चौखट पे ना जाने कब मर गया, और तेरी चाहत थी कहीं और सर झुकने की. - अज्ञात

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    1. Anonymous: kya baat he sir..!! apko apna khud ka blog bana lena chahiye.. kafi followers milenge.. ek me bhi ban jaunga....
      ..
      sorry to say.. magar ye kisi ke blog k comment me ye sab likhna.. ye kuch jyada hi he... sayad ye apki feeling bhi ho sakti he unke liye.. but is a public blog... dont take me in wrong sence.. i just suggest you. Agyatji.

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  6. Agreed with you.. Sir... I will not write this further now... I will make my own blog now.. as said and suggested by you..Thanks & Regards. But I think I have not said anything bad..for anyone there... even for Rituji.

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  7. मधुमिताJuly 25, 2014 at 5:05 PM

    प्रिय ऋतु जी,
    बहुत ही उम्दा लिखा है....काफी लम्बे अन्तराल के बाद काफी लम्बा लेख पढ़ कर ब्लॉग के शुरुआती रचनाओं का अनायास ही स्मरण हो आया.
    दैनिक संवेदनाओं को सहज शब्दों में बयान करने में आपकी पारंगति प्रशंसनीय है...
    साधुवाद.

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    1. Shukriya Madhumita ji and Gaurang for appriciate again and to take keen interest for writer's matter or feelings,.Do keep in touch further,Friends!!!

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  8. मधुमिताJuly 25, 2014 at 5:39 PM

    प्रिय अज्ञात जी,
    आपकी टिप्पणियां बहुत ही निजता व्यक्त करती हुयी प्रतीत हो रहीं हैं. आपके लेख निस्संदेह ही प्रशंसनीय हैं परन्तु लेखिका के लेख से ही नहीं ब्लॉग से भी मेल नहीं खा रहे. विषयांतर सर्वथा अनुचित है... क्यूंकि मैं इस ब्लॉग के शुरुआत से ही जुडी हुयी हूँ, मुझे आपकी टिप्पणिया लेखिका के लेखन को दिग्भ्रमित करती प्रतीत हो रहीं हैं. एक महिला होने के नाते आपसे अनुरोध है की कृपया इस तरह की रचनाओं को, जो कि अत्यंत निजता को प्रकट करती हुयी प्रतीत हो रही हैं, एक अपना ब्लॉग रच कर प्रकाशित करें.... जैसा की गौरांग जी ने भी उल्लिखित किया है..... ताकि एक अलग प्रकार की रचनाओं का रसास्वादन हम सभी आपकी भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए करें.

    अन्यथा न महसूस करें वरन समझने का प्रयास करें कि वैयक्तिक भावनाओं का वर्णन अपने ब्लॉग पर करना ही उचित है.

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  9. I regard..your suggestion and as I replied to Sh. Gurang also. Will initiate my Blog. Sh. Gurang Will be my first follower.. Thanks & Regards. I expressed that , b'cause got highly emotional and openly expressed myself..in front of all. didn't even thought of that how would you all feel .. But got to know now.. But waiting for the reply of Rituji also.. will do than next.. c u ..Madhumitaji really you have a sound vocabulary and command over Hindi and English Both.. would like to c u soon.. to get your blessing ...if u allow.. Warm Regards to All of You..

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  10. I do agree with you that I have nothing to take with "Blog". I never read her "Blog" and I remember, if I read her Blog story, But I couldn't understood that... I have only concern with Rituji...So wrote for Her... . Will stop now commenting.. Bye .TC.. . Bye.. Rituji...Forever..:)

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