आज़ादी,...दिल
-दिमाग, रोने -हंसने,.ख्वाइश-जिद्द करने की;
रह गयी उम्मीद से परे आज़ादी, सिर्फ उस मासूम बचपन की!
रह गयी उम्मीद से परे आज़ादी, सिर्फ उस मासूम बचपन की!
आज लगा कि तन्हाई में,उस खिलोने की तरह यादों से खेलूं
Happy Independence Day |
.....,,कई दिन हुए बेवजह ,.मुस्कुराकर नहीं
देखा???
बचपन की उस बात पे कितना यकीं था,जो अक्सर माँ कहती थी....,
.,,,कि... उन दिनों 'चाँद' पर परियाँ रहा करती थीं !!!
जब सावन में अक्सर पेड़ कि डालियाँ बोझ हमारा सहती थीं ...,
जब हर गली से "आओ खेलें" की हुंकार आया करती थी ....,
अक्सर वो शाम भी छत पर चंचल सी हुआ करती थी
हर छोटी बात पर आखोँ से नदिया बहा करती थी,.!!!
वो बचपन के ही दिन कितने अच्छे हुआ करते थे ,...
तब दिल नहीं,,,सिर्फ खिलौने ही टूटा करते थे..??
जिसके लिए हम दिल भर के बे-वज़ह रोया करते थे,....
और बिना उम्मीद के ही कब खुद ही चुप हो जाया करते थे,,!!
जाने किस कशमकश,,बेकरारी में अब हम-तुम जो बडे हुए,,
जो अब ख़ुशी तो क्या,,,रंज में भी आंसू हमसे दूर हुए… ???
बचपन की उस बात पे कितना यकीं था,जो अक्सर माँ कहती थी....,
.,,,कि... उन दिनों 'चाँद' पर परियाँ रहा करती थीं !!!
जब सावन में अक्सर पेड़ कि डालियाँ बोझ हमारा सहती थीं ...,
जब हर गली से "आओ खेलें" की हुंकार आया करती थी ....,
अक्सर वो शाम भी छत पर चंचल सी हुआ करती थी
हर छोटी बात पर आखोँ से नदिया बहा करती थी,.!!!
वो बचपन के ही दिन कितने अच्छे हुआ करते थे ,...
तब दिल नहीं,,,सिर्फ खिलौने ही टूटा करते थे..??
जिसके लिए हम दिल भर के बे-वज़ह रोया करते थे,....
और बिना उम्मीद के ही कब खुद ही चुप हो जाया करते थे,,!!
जाने किस कशमकश,,बेकरारी में अब हम-तुम जो बडे हुए,,
जो अब ख़ुशी तो क्या,,,रंज में भी आंसू हमसे दूर हुए… ???
आज़ादी की अभ्वय्क्ति उस बचपन के साथ.......ये ही हकीकत है,....सुन्दर लिखा
ReplyDeletepar ye aajadi kisne aur kab chini pata bhi na chala.
ReplyDeleteSahi kah rahi ho...
Deletekavita di...
be in touch further with posts
Bahut Khoob Likha hai Ritu! Reminded me of my BACHPAN & all the good things associated with it. Jab chotte they to hamesha jaldi se bade hona chahte the...nahi maloom tha ke Zindagi kitni badal jayegi, bade hone ke liye kya kya khone padega!!! Woh masoomiyat, woh chhoti- chhoti khushiyan, na zamane bhar ke gham, na rishton ke bandhan. Reminds me of Jagjit Singh's ghazal...'Yeh daulat bhi le lo.....' :-)
ReplyDeleteExactly, Naveen......sirf ek bachpan ke khiloney ki tah yaadein hi rah jaati hain,..yahan tak pahunchkar........Thanks,..to be regular with posts and feel the words.....
Deletebe in touch further,with posts....
Good..Ritu ji ! I feel there should be PUKAAR instead of HUNKAAR. May be I am wrong.. as I don't know much about kavya/Hindi.
ReplyDeleteotherwise all words are beautifully written....
Pukar ka matlab ek baar bulana.,,,ya pukarana....lekin bachpan mein ek hi baat ko baar baar usi ko kahne ko,...Hunkaar kahte hain.....
Deletebohat khoob Ritu
ReplyDeleteDil dhadkne ka tasavvur bhi khayali ho gaya
ek tere jaane se sara shehar khaali ho gaya..........
wahh!! Madhu,......nice lines .....be in touch further..,with posts
DeleteI don't like waiting, but if waiting means having you,
ReplyDeletethen I will wait until I have you.
Too Good!!!
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