...वो कुछ कही अनकही बातें उसकी,,,,
वो कुछ कहकर हर बात को जताना मेरा,,;;
क़ि, कभी तो कुछ हक़ीकत लगे उसको,,
..और ‘वो सब कुछ कह-सुन कर भी ,,,वो कुछ कहकर हर बात को जताना मेरा,,;;
क़ि, कभी तो कुछ हक़ीकत लगे उसको,,
ना समझने की अदाएं दिखाना उसका ??
इसी गहमागहमी..कशमकश के जाल में,,
कभी सुलझना मेरा, तो उलझना उसका???
कब...किसी एक मोड़ पर, तनहाई के परे,,,
इसी अंदाज़ को लिए, बीत जाये अब जिंदगी
ये ही सोचकर बेख़बर मुस्कुराना मेरा,,,,
....और ख़ुद ही से टकराते रहना उसका????
जब से हुई, उससे तर्क-तार्रुफ़ 'मेरी गुफ़्तगू...;
कब अपने लिए ही दुआ मांगने लगी ज़िन्दगी !!
उम्मीदों से परे,..बेसहारा जब मोहब्बत कर गयी ...;
फिर उन्हीं जज़्बातों का मुझे, सहारा देने जा रही ज़िन्दगी......!!!