Monday, October 26, 2015

उसने कहा था..........;
कुछ तो कहा ही था ना उसने
वो एक ज़ज़्बा, एक हौसला लिए,,,!!;
जिसको हकीकत में  लिए,,;
एक  हाथ आगे,,, 'भरोसा,,,,एक तमन्ना,,,,;
उस तर्क--ताल्लुक़ के साथ,,,‘एक तक़ाज़ा लिए,;
ख्वाइशों के पर लगाए ,,;
अपने ख्यालों,,,अपने यकीं से बढ़ा,,,,!!
या फिर सिर्फ एक मरीचिका भरम लिए;,,;
सिर्फ कोई एक ही आगे बढ़ा ,,,,??
बिना उसकी जाने ;,,,
जो सच में क्या ठाह थी उसकी ,;?    
'कि वो चाहता तो था ,,,’मगर हौसला ना था उसका ,,;
वो जो कुछ, कभी 'उम्मीदों से परे',,,
. मुझसे....उसने कहा था??,,

Wednesday, August 12, 2015

बीते दिनों से वो सिमटे अलफ़ाज़ नहीं मिल रहे थे,
कोई तर्क, कोई हलचल नहीं...
रही तो बस! एक बेचैनी , एक पूर्ण विराम...!
....उस खुले दरवाज़े की तरह..;
ड्योढ़ी पे नज़रें जहाँ दायें-बाएं रखी रही कई सालों से
वो खुला दरवाज़ा आज तलक ना ढुकाया हमने,
बरसों कानों को एक आहट सुनने का इंतज़ार रहा;
...'आज एक और सामान बंधा...;
मुक़ाम पे अपने लिए कर गुज़रने को तैयार हुआ वो
‘वो जो फ़ागुन में बौछारों की तरह साथ रहा मेरे..  
एक सर्द-गर्म  की धूप छाँव  लिए
हज़ारों यादें गुज़रे सालों की अब सिरहाने छोड़े
तमाम ख्वाइशों की मुठ्ठी को उस दहलीज़ पे  लिए ..,
वो जहाँ से बरसों से हवा आर-पार हो रही थी...
आज वहीँ तैयार खड़ा है वो...
आज मन नहीं है मेरा...;
फिर भी हाथ पकड़,..मंज़िल को रुख किया ..;
..'कहा...'मुड़ कर देखते रहना इस पार..;
कि जब भी इस राह से गुज़रूँगा..,
.....'हरदम ये नम आँखें,,, रुकी जुबां..
'एक कसक,,'उम्मीदों से परे एक एहसास दिलाती रहेगी..,
.............इस खुले दरवाज़े का....!!!

Sunday, May 10, 2015

वो "उमीद्दों से परे हाथ".,, 
“एक अंधे की तरह उसका हाथ पकड़ के चलते हैं हम ,
         एक उम्मीद, भरोसा लिए .. ताह ज़िंदगी जूझते हैं हम!
अपने जीवन में मैंने अपनी माँ का रिश्ता हमारे लिए उम्मीदों से परे' ही देखा.,लेकिन कभी-कभार उनकी आँखें सबके लिए उम्मीदों से भरी होती थीं ,भले ही वो चाहे कुछ नहीं कहती थीं
पर आज जब २३ वर्ष बाद मैं उनकी जगह हूँ तब वो आँखें याद करती हूँ ,कि जब हम उनकी उम्मीदों पे खरे नहीं उतरते थे और तकलीफ उनको होती थी..'वो आँखें जिनमें सही में एक सुकून,,एक मासूमियत,,,एक शिक्षिका और अनगिनत भावनाएं अपनों के लिए और दूसरों के लिए हमेशा बरकरार रहती थीं.. एक धैर्य ,विश्वास के साथ!!!!!
एक अनकहा स्पर्श ,,,,बेइंतहा याद करते हैं इस स्पर्श को....
कभी एक मीठी सी मुस्कान के साथ,तो कभी एक कड़वाहट के साथ भी…; 

मेरे बचपन से कई सालों तक  मेरे सर पे एक मोहब्बत भरा हाथ था,,
गम-ख़ुशी में,प्यार-तकरार में,अंधेरों में जो हाथ थामें मेरा हर घड़ी साथ था,
कभी भाग जाए नींद अचानक,'अपने ही कमरे में तन्हा मुझे ख़ौफ़ लगता;
एक आवाज़ जिस पर यकीं था.,'मुझसे चुपके से तब  कहती ,..'डरना नहीं...;
"देखो मैं पास हूँ,यहीं -कहीं हूँ,...ऐसा लहज़ा हुआ करता था ....!!!!!!!
..उसके इसी लहज़े से सारे ज़ख्मों को मलहम तब लग जाया करता था,,...
लेकिन जब आज मैं  तनहा ,
 परेशान हूँ ..’कितनी रातों की  जागी हुई हूँ,
आँखें भी जैसे पथरा सी गयी  हैं, और जिस्म भी दर्द से चूर है...
ज़हन सोचों से कशमकश में है और दिल ज़्यादा ही रंजूर है?????
और आज ,अब वो हाथ मुझसे कोसों बहुत ......'बहुत...बहुत ... दूर हैं '...!!
तब भी ना जाने क्यूँ..'इसी इंतज़ार में हूँ कि माथे पे मेरे इक हथेली धरे.,
धीरे से लहजे में मुझसे कहेंगे कि 'ऐसे घबरा मत"..देख मैं तेरे साथ हूँ"..
शायद ऐसी बातों पे शायद मैं यक़ीन ना करूँ,,पर बहल ज़रूर जाऊँगी,,,,
और फिर....कब उसी हाथ को थामे सो जाउंगी................................!!
आज जिनकी जननी ना हो के भी  ,,है वो बीच सदा किनारे ...
...
'आके अपने हाथों से..'कब छू कर भर देगी सब ज़ख्म हमारे   
उस
 माँ को नमन सदा करता रहेगा ये दिल हाथ पसारे....

…..कि बनाये रहे सदा वो अपनी छाया  ..बीच हमारे....!!!
.......Happy  Mother’s Day…..!!!!

Thursday, April 9, 2015

ना जाने कहाँ बिसर  गए....
..हरे सुनहरे पत्ते वो ज़िंदगी के....!
गए दिनों से कुछ अलफ़ाज़ नहीं मिल रहे,
कोई सोच,कोई ठोर,,कोई राह..
किसी भी ख्वाब,,,कोई हकीकत का ज़िक्र..
गुज़रे पन्नों की वो ज़र्ज़र किताब लिए
खुद से खुद कश्मकश ज़ारी है;
हर वक़्त मंन ना जाने क्यूँ भारी है
सोई-जागी इन  आँखों की पहचान किये
अंदर की  सुबह से मिलने की तैयारी है
उम्मीदों से परे' परास्त-खोई हुई इच्छाओं
उमंगो,रंगों से हरदम ये दिल भरा है..
….
भरा है वो बिखरे मखमली सुर्ख़ लाल रंग लिए
....
स्याही के कई इंद्रधनुषी रंग लिए 
'ज़िंदगी के हर पन्ने पे उतारने की ख़ुमारी है.....!!!!

Thursday, February 26, 2015

ये दर्द कैफियत के किस्सों में उलझे
कभी आने, बरसने को आतुर-सुलझे
ये नमी,,,जो पलकों में बसी बरसों..
कभी भरे,,कभी रुके ये आंसू..
एक मुस्कराहट के अधीन से..
एक पलक झपकती हंसी को रोकते..,
बेसबब यूँ ना कभी ये छलका करते,
तन्हाई में कब हमसाया बने  ...
यूँ जब सुनाते हैं अपना गुज़रा रूदाद-ए-सफर;
छलकने को बेपरवाह रहते हैं ये आंसू !!!
उम्मीदों से परे',,,,मज़बूर करती है...
दर्द सख्ता बन चुकी है ये ज़िंदगी....
हरदम एक खलिश,,एक रंजिश ,
जाने किस मोहब्बत,,,कौन से अपनेपन की मुख़्तसर;,
उम्मीदों से भरे.. हरदम ये आंसू...
कोई हो जो ख़ुशी को बिठाए लबों पे
कि,,,गम ही सिर्फ अश्कों में बिखर जाए...
जो मोहब्बत बची भी है ज़िंदगी  से...
गुज़ारी  है जैसे ,,,.ना फिर 
वैसी गुज़र जाए...;
वो जिसको कहते हैं इश्क़-ए-जुनून,,
इस नमी पे यूँ गुज़र जाए....
सूखे पत्तों की तरह जो बिखरे पड़े हैं  ...
....कब हम संवर जाए और ये अश्क सिमट जाए......!!!

Saturday, January 31, 2015

वो लफ़्ज़ों में फँसाने ढूँढ़ते ..,
कब लम्हों में ज़माने गुज़ारते…,
वो कब आँखों के हँसते इशारे,
कब  जानभूज़ के शांत में यूँ गुनगुनाना,
वो हर वक़्त की ख़ामोशी की चाहतें..
वो
फिर रूठना,,,हर बात पे..;
वो बेवजह की शिकवे-शिकायतें.,
हर बात पे यूँ फिर मानंना…,
वो सब भूल कर यूँ करार रहा....
वो ही पूछतें हैं आज बेखबर ..
...
कहो..,''वफ़ा करोगी क्या तुम सदा???
 
गए दिनों जो वो एक हक़ रहा..,
वो भरोसा ना जाने क्या हुआ...;
उम्मीदों से परे..'वो अनकही बातें ..
वो ख्वाब,,,पल,वो चाहते,,,,को क्या हुआ...
जो सफर गुज़रा  यूँ साथ साथ...
एक पल ही में  वो ख़ाक़ हुआ....
..
जब पूछ बैठे अचानक वो...'कहो आज कैसे आना हुआ???
यूँ खुद को दिलासा दें या तौबा उस भरोसे की..
आज वो हैं ... अपना वहीँ पे ....
पर .' मेरा ना मुझ में अब कुछ रहा......????