कब लम्हों में ज़माने गुज़ारते…,
वो कब आँखों के हँसते इशारे,
कब जानभूज़ के शांत में यूँ गुनगुनाना,
वो हर वक़्त की ख़ामोशी की चाहतें..
वो फिर रूठना,,,हर बात पे..;
वो बेवजह की शिकवे-शिकायतें.,
हर बात पे यूँ फिर मानंना…,
वो सब भूल कर यूँ करार रहा....
वो ही पूछतें हैं आज बेखबर ..
...कहो..,''वफ़ा करोगी क्या तुम सदा???
गए दिनों जो वो एक हक़ रहा..,
वो भरोसा ना जाने क्या हुआ...;
उम्मीदों से परे..'वो अनकही बातें ..
वो ख्वाब,,,पल,वो चाहते,,,,को क्या हुआ...
जो सफर गुज़रा यूँ साथ साथ...
एक पल ही में वो ख़ाक़ हुआ....
..जब पूछ बैठे अचानक वो...'कहो आज कैसे आना हुआ???
यूँ खुद को दिलासा दें या तौबा उस भरोसे की..
आज वो हैं ... अपना वहीँ पे ....
पर .' मेरा ना मुझ में अब कुछ रहा......????
Bhool jaaon to jee nahin sakta,
ReplyDeleteYaad aao to dam sa nikalta hai..?
Bhavnaayein nikal kar tashtari mein rakhney ka hunar hai aapko,,
Carry on,..keep it up Rituji.
Thanks Mr. Anonymous,,,for being regular with post and for feel the words in between the lines..do keep in touch with blog.
DeleteRegds
दिल....दिल तो है दिल
ReplyDeleteदिल का एतबार क्या कीजिये
आ गया जो किसी पे प्यार
क्या कीजिये...
ऋतुमाला जी
इस रचना को पढ़ते ही अनायास इस गीत की पंक्तियाँ याद आती हैं
हृदय के चीत्कार को सरालतम शब्दों में अभिव्यक्त करने की कला में आपके पारंगंण को साधुवाद
खूबसूरत पंक्तियाँ है या हाल-ए -दिल,,,मधुमिता जी,,शब्दों के बीच भावनाओं की अभिवयक्ति चुनने ,समझने के लिए और निरंतर जुड़ने के लिए शुक्रिया,,,,
DeleteOh good one
ReplyDeleteOh good one
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