कब लम्हों में ज़माने गुज़ारते…,
वो कब आँखों के हँसते इशारे,
कब जानभूज़ के शांत में यूँ गुनगुनाना,
वो हर वक़्त की ख़ामोशी की चाहतें..
वो फिर रूठना,,,हर बात पे..;
वो बेवजह की शिकवे-शिकायतें.,
हर बात पे यूँ फिर मानंना…,
वो सब भूल कर यूँ करार रहा....
वो ही पूछतें हैं आज बेखबर ..
...कहो..,''वफ़ा करोगी क्या तुम सदा???
गए दिनों जो वो एक हक़ रहा..,
वो भरोसा ना जाने क्या हुआ...;
उम्मीदों से परे..'वो अनकही बातें ..
वो ख्वाब,,,पल,वो चाहते,,,,को क्या हुआ...
जो सफर गुज़रा यूँ साथ साथ...
एक पल ही में वो ख़ाक़ हुआ....
..जब पूछ बैठे अचानक वो...'कहो आज कैसे आना हुआ???
यूँ खुद को दिलासा दें या तौबा उस भरोसे की..
आज वो हैं ... अपना वहीँ पे ....
पर .' मेरा ना मुझ में अब कुछ रहा......????