Friday, January 2, 2015

उसके साथ एहसास  हुआ..;
कि अनकही बात को कैसे सुनता है कोई..,
अक्सर जब नज़रों के दरीचों से ,

कुछ कहने से पहले पूछे वो मुझसे, 'जानती हो?

सब कुछ जानकर भी लगता तब 'अनजान हूँ मैं
अगरचे ,उसके लहज़े की वो वफ़ा ,हैरानीयत ,,
अंदाज़-ए-बयान, वो एहसास उसके अपनेपन का,
उस हक़ का,,एक भरोसे का,उसकी मौज़ूदगी का.
वो तर्क- ए-ताल्लुक उसका, वो सिमटते मायने

वो ताबीर-ए-मोहब्बत ,वो मुसलसल चाहत,
..कि सुनने पे उसके सब अलफ़ाज़....
समझ आये तो बिखर जाऊं, ''ना समझूँ तो उलझ जाऊं..;
बड़ी तब्दीलियां आई अपने आप में लेकिन..
अनकही यादें याद करने की आदत अब भी बरक़रार है ..
लगता था  तब   ..'कि अनजान नहीं थी मैं...
....सब कुछ ही तो जानती हूँ मैं.......
जब हैरत भरी ज़ुबान से कह जाता 
वो अक्सर...'जानती हो…???


3 comments:

  1. Ab Usai Roz Na Sochun TO Badan Tutta Hai Faraz.
    Aik Umer Ho Gai Hai Uski Yaad Ka NAsha KArte KArte?
    Kuchh alfaaz lahze ke tarrnum liye zindgi bhar yaad rahtey hain..
    very well written, Ritu ji. Keep it up.

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  2. मधुमिताJanuary 3, 2015 at 3:20 PM

    मोहतरमा
    हैरान हूँ मै कि इतनी सरलता से
    हैरान हूँ मैं कि इतनी सहजता से
    कोई कैसे दिल को कागज़ पर
    कलम से उतार सकता है?

    अंतर्मन को इतने भावुक अंदाज़ में व्यक्त करने के लिए करतल ध्वनि से अभिनन्दन।

    सर्वोत्तम रचना के लिए अवर्णित शब्दों में साधुवाद!!!

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    1. बस ! मधुमिता जी दिल को दिल से राह होती है....
      जो दिल,,जुबां पे हो,,कागज़ पे सहझता से उतर ही जाता है.
      सवेंदंता को प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया

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