Tuesday, January 13, 2015

हरसूँ बिखरते ये कुदरत के हसीं जलवे,,
वो ठहरी ओस की बूँदें...
ये सीत,,...वो कोहरा,,सिहरन,,
सुबह की हलकी लालिमा लिए
कानो से दिल में उतरती-मचलती 
साएं -साएं  गूँजते हवा के थपेड़े,
होठों की जमती ठिठुरन ..
वो हर एहसास के साथ यादें...,
वो अपने दायें-बाएं का खालीपन,
ज़ुबाँ पे भूला-बिसरा  गीत,,,
गीत के साथ सफर के नज़ारे
उम्मीदों से परे,’हैरान आँखें, ज़ज़्बात,,,
कि देखे , सोचे और क्या-क्या...?
वो हर तमन्ना के साथ आती शाम...
वो शाम के ख़्वाबों में बसे तुम,,;
मुसलसल, वो आँखों की चमक,
तमन्नओं से भरता दिन भर का खालीपन..
उस खालीपन को मुकम्मल  करते 'तुम'
वो ढलती शाम को ओढ़े आते ख़्वाब...,
एक दिन भर की ठंडी सीलन के साथ,
असफ़ज़ाई हकीकत लिए सिर्फ……’सिर्फ मैं और तुम.......!!!

4 comments:

  1. Tum paas hotey ho..'Goya
    Tab dusraa koi nahi hota...
    Behtareen alfaaz ke sath khubsurat ehsaas..
    Keep it up, Rituji.

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  2. one the of the BEsT. Ritu.

    Its Wandering Mind there. you are confused about your feeling.

    Nawazish kejiye Hum Par, Tohfa Qabool Kar K...
    Lafzon ki Banawat K Sath, Dil Ka Nazrana Pesh Karte He..!!

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    1. Oh! Thanks Gauri.,for being regular with Posts and for beautiful lines....
      ना मुमकिन है इसको समझना,
      दिल का अपना ही दिमाग होता है
      मोहब्ब्त के लिए कुछ ख़ास दिल मुक्मल होते हैं...;
      ये वो नग़मा है,,'जो हर साज़ में गाया नहीं जाता!!
      Do keep in touch.

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  3. मधुमिताJanuary 15, 2015 at 4:39 PM

    बहुत दिलकश अंदाज़ेबयां ।।।
    तदुपरांत अत्यंत सटीक प्रत्युत्तर।।।

    साधुवाद

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