बेख़बर दिल कब किस ख़वाब को सच मान ले,,,'नहीं पता..,
बेख़बर जो ठहरा ,,,शायद अपने लिए बेपरवाह भी..;
आज कुछ यूँ ही अपने धुन में ,,,,उन असफ़ज़ाई ख्वाब में.,
कब अचानक लगी ठोकर,,तब ज़ुबान पे और कोई नहीं..;
बस!!!! अलफ़ाज़ वो उम्मीदों भरा 'माँ' निकला....
जैसे कि,..' एक दुनिया है इस लफ्ज़ में....!!
तब एहसास हुआ,,और कहा दिल ने दिल से ...;
कि,,'तुम ना सम्भलोगे ठोकर खाकर भी...,
बेख़बर जो ठहरा ,,,शायद अपने लिए बेपरवाह भी..;
आज कुछ यूँ ही अपने धुन में ,,,,उन असफ़ज़ाई ख्वाब में.,
कब अचानक लगी ठोकर,,तब ज़ुबान पे और कोई नहीं..;
बस!!!! अलफ़ाज़ वो उम्मीदों भरा 'माँ' निकला....
जैसे कि,..' एक दुनिया है इस लफ्ज़ में....!!
तब एहसास हुआ,,और कहा दिल ने दिल से ...;
कि,,'तुम ना सम्भलोगे ठोकर खाकर भी...,
क्यूँ तरसते,,तड़पते हो गैर मौज़ूदगी भरे उन अल्फ़ाज़ों को;
उन ना-उम्मीदों को,...उन मायनों को भी...;
जो सिर्फ कहने भर से भी नहीं आज इर्द-गिर्द तुम्हारे..;
हो ,,,तो सिर्फ 'तुम,,,उन उम्मीदों और आकंक्षाओं से परे;
सिर्फ तुम ,,,,तुम्हारा अपना वज़ूद,,अपना खुद पे भरोसा.;
तुम तो ख़ुद गुज़रे वक़्त की नमी से कब के पत्थर हो चुके हो!
...और,,,वो भी 'माँ' के ही लफ्ज़ थे कि…;
'वक़्त ही सिर्फ वो ज़ालिम है,,,,जो हर मोड़ पे टकरेगा...;
उन ना-उम्मीदों को,...उन मायनों को भी...;
जो सिर्फ कहने भर से भी नहीं आज इर्द-गिर्द तुम्हारे..;
हो ,,,तो सिर्फ 'तुम,,,उन उम्मीदों और आकंक्षाओं से परे;
सिर्फ तुम ,,,,तुम्हारा अपना वज़ूद,,अपना खुद पे भरोसा.;
तुम तो ख़ुद गुज़रे वक़्त की नमी से कब के पत्थर हो चुके हो!
...और,,,वो भी 'माँ' के ही लफ्ज़ थे कि…;
'वक़्त ही सिर्फ वो ज़ालिम है,,,,जो हर मोड़ पे टकरेगा...;
टूटे हो पर बिखरे भी नहीं हो इतना ...कि..;
…..इन राह बिखरे पत्थरों से तुझे अब कभी ख़राश भी आये …..!!!!
…..इन राह बिखरे पत्थरों से तुझे अब कभी ख़राश भी आये …..!!!!