Tuesday, September 16, 2014


गुज़ारिश’……………….

..इत्तेफ़ाक़ है या हकीकत,,,इस ज़िंदगी में;
लोग अक्सर अनजाने में मुख़ातिब 
होते क्यूँ है???
...टकराना सही...'किस्मत के हाथों;
वो एहसास-ए-मोहब्बत-ए-शौक़ जताते क्यूँ है?
वो एहसास भी ज़ायज़..'उन बेपाक निगाहों के ज़रिये;
..कि दिमाग़-ए-ज़हन के करीब उतर कर...
...रुक -रुक के यूँ संभलते क्यूँ है??....
गोया, यूँ जो ख़ौफ़ रखते हैं रूस्वायिओं का..;
 ...तो फिर घर से 
बाहर निकलते ही क्यूँ है ???
जाने क्यों एहसास वो एहसानो का..;
पल...दूजे पल,,,हर पल जताते क्यूँ है?
.आते -जाते..
उस रंग-बेरंग ..;
उस बेपाक मौसम की तरह बदलते क्यूँ है??
तन्हाई के आलम में बेमौसम बारिश में भीगें कभी पलकें..;
क़तरा-क़तरा वो पानी किसी को ख़ुशी लगती क्यूँ है??
.'गुज़ारिश है, मानिंद सी रहे अब ज़िंदगी मेरी...;
कि उम्मीदों से परे’.. वक़्त की तरह खेल कर ..;

….यूँ अब ताश के पत्तों की तरह तकसीम ना करे कोई ..,
कि रही ना अब कोई ताक़त उन बेखलूस ख्वाबों की भी..;
फिर किस बिनाह पे कहते रहे .'बनती-बिगड़ती ये आरज़ू क्यूँ है???  



5 comments:

  1. Kisi ne sahi hi kaha hai Mohtarmaa ki, Naamumkin hai isko samjhnaa
    dil ka apnaa hi dimaag hota hai
    Keep it up well going

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  2. वफ़ा की मौज मस्ती में अब भी 'बादशाह' हैं हम,
    जो दिल को तोड़ देते हैं
    हम उन्हें छोड़ देते हैं...

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    1. Kya baat kahi,,,wah..,Gaurang..
      मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं, पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते ..
      its also true...well thanks for feel the words...

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  3. Dear Ritu ji,
    bahut hee umda likha hai....
    Saadhuvaad.....

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    1. shukriya Madhumita ji niranter jurney aur protsaahan ke liye,....

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