Monday, September 1, 2014

कभी ख़ुद से सुनता है,'तो कभी जूनून-ए-दिल की;
इसके हिस्से में ना जाने कितनी ख़लिश बाकी है?
अक्सर तारों के तले ,,,तन्हाई में सोचता हूँ मैं..;
संगदिल-ज़िंदगी का कितना नज़दीक आना बाकी है?
दूर रहकर भी कम्भख्त ये दे चुकी जितनी सज़ा;
आशना जब लगा करीब,'फिर क़ज़ा कितनी बाकी है?
तन्हाई ही क्या रह गयी है मुसलसल इस ज़िंदगी में;
या,,,फिर और शानसाई इसकी बाकी है ??
वो कभी जो दावे हुआ करते थे शहर के अपनों के
अलफ़ाज़ मेरी किताब के क्या और पढ़ना बाकी है ??
वरक-वरक वो मेरे सामने, 'रू-ब-रू मैं उसके करीब;
उसी का रह गया है सिर्फ सबब मुझे,,
....कि ना अब कोई और ख्वाइश बाकी है !!!
रह गयी ना उम्मीद-ए आरज़ू भी ;
कि उम्मीदों के परे' अब कोई मुझे लक़ाब ना दे..,
‘ख़ुदा का ही रह गया ऐतबार ,,,यही आख़िरी गुमान बाकी है....!!!!!


शानसाई--खोज   
* लक़ाब --शीर्षक

5 comments:

  1. Khwaishon ke parey khoobsurat tasveeer hai....Carry on..
    umdaa.........

    ReplyDelete
  2. Ya to aapko khud se fariyaad he, ya to Uperwale se sikayat.
    esa aksar hota he, jab koi sochta he "Umeedo se pare."

    अगर मै भी मिज़ाज़ से पत्थर होता तो
    मै या खूदा होता, या तेरा दिल होता.!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Bahut sahi kaha,,,shayd ab tak khud se hi ranjish rahi hai,,,aur ab ummedon se parey sirf us KHUDAA se darkhaast hai,....
      'Jo bhi aaya dard ...thokar se nawaaza mujhey
      shayd patthar hi ho chuka hoon....
      ...naaz bhi ab koi uthayegaa bhi to kaisey???
      thanks for your lovely comment...n keep in touch further.

      Delete
    2. Bahut umda likha hai....khuda ka hee ek sahara hai is jahan mein..... insaan to aksar saath dene ke nishan hee chhod jaate hain...

      Delete
    3. Shukriya Madhumita ji,, you and Gaurang are my regular readers and motivators too for appriciate my words of my inner feelings ,,,do keep in touch further..

      Delete