वो रंजिशें,'वहशत में गुज़री जो ज़िंदगी.;
आज यूँ मुसलसल अरमान उठे जो ज़हन में.,
बरसों बाद दिल कभी मिले किसी रहगुज़र से;
कि,,ज़िंदगी ना भरे धूल कोई इस रहगुज़र में
वो शौक-ए-मंज़र जो सोचते रहे हम
कभी छम से कोई आए यूँ मेरी ज़िंदगी में
कि नज़र तक को मेरी तब इत्तेला तक ना हो
दिल चाहे चाहतों से बढ़कर हो जाये ज़िंदगी में
जो लम्हे आज़माये बगैर गुज़ारे उस सहर में;
...ना रूठे तब वो किसी भी आज़ाब से..
..ना थामे किसी सुकून-ए-ख्वाब से;
..कि हरसूँ साथ वो ,,उस हर सुकून-ए-पल का;
,,कि जो उम्र एक बिता चुके हैं किश्तों में;
कि अब ना हो शिकस्त-ए-दिल बची ज़िंदगी में;
तफ़सीर ये वक़्त की ना बीते पैबंदकारी में,,,,;
उम्मीदों से परे अब 'वो ख़ुदा ही ये अता करे,
कि ख्वाबों की ताबीर में उलझा ली जो ज़िंदगी ...
इस ख्वाब-ए-मंज़र को भूलने की दुआ 'वो ना कभी क़ुबूल करे !!!!
Khuda karey aapke alfaaz aur khwaab hakikat mein tabdeel hon....
ReplyDeletekeep it up, mohtarmaa.
Kabhi Dil Dhoka deta he..
ReplyDeleteKabhi Dimag Dhoka deta he..
to
Kabhi Situation Dhoka de jati he.. Ibadat aur Izazat me itna hi farq he..
Hum unke liye Ahem......
Wah Dil_e_Nadan Tera Wahem....
sahi kaha tumne, Gauri....agree with you
ReplyDeleteKoi jaanat ka talib hai,,koi gham se pareshaan hai;
Zarurat Sajdaa karwaati hai,,,,,'Ibaadat kaun karta hai!!
aur thokron ke baad bhi,,is naadan-e-dil ke mashwaron pe amaal karte hi rahtey hain??
Do keep in touch alwz
Bahut hi umda Ritu ji
ReplyDeletebahut bahut shukriya Sir,...nirantar jurney aur sarahnaa ke lie...
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