“एक अंधे की तरह किसी का हाथ पकड़कर चलते हैं,
‘वो’ जो मोहबत्त में किसी पर भरोसा करते हैं !!!”
....उसको घर पर काम किये हुए दो महीने ही हुए थे ...उसको अचानक अपने गाँव जाना पड़ गया......वो दो बार मुझसे मिलने आई….,मैं घर पर नहीं मिली .....शायद उसको कुछ कहना था....वो दुबारा देर रात आई....कहने को उसके पास कुछ नहीं था...लगभग १० मिनट तक टकटकी लगाए देखती रही...फिर देखते देखते उसकी आँखें भर आई.. तब तक मैं कुछ अपने काम में मसरूफ थी.....ध्यान ही नहीं दिया कि...कुछ बोल तो नहीं रही है ..,, पर कुछ कहना चाह रही थी...........बस नज़र मिलते ही.....बेवजह लिपट कर ऐसा रोई कि मुझे अपने पर पछतावा हुआ कि पिछले १० मिनट से गौर क्यूँ नही किया ......फिर जैसे कि उसे सीने से लगाकर मुझे लगा कि …..
"मैं कभी कभार इस पल को बहुत सालों से तरस रही थी "......और आज जब वो रोई तो एहसास हुआ कि, आज उसको अपनी उम्मीद्दों से परे कितना सुकून मिला होगा !!!
........... तीसरी बार वो उस एक भरोसे के साथ सिर्फ मेरे पास ही आई .... उसकी किस्मत अच्छी थी कि मैंने उसे अपने ही दर्द में महसूस किया और भरोसा दिलाया,..वरना हम कभी -कभी तन्हाई में इसी सुकून को ढूँढने कि चाह में किसी का कंधा और भरोसा ढूंढते रहते हैं......बिना ये सोचे-समझे कि बाद में वो ही भरोसेमंद निकले,, या ना निकले........ क्योंकि भरोसा और अपनापन हर किसी में नहीं मिलता!!!!!....
‘वो’ जो मोहबत्त में किसी पर भरोसा करते हैं !!!”
....उसको घर पर काम किये हुए दो महीने ही हुए थे ...उसको अचानक अपने गाँव जाना पड़ गया......वो दो बार मुझसे मिलने आई….,मैं घर पर नहीं मिली .....शायद उसको कुछ कहना था....वो दुबारा देर रात आई....कहने को उसके पास कुछ नहीं था...लगभग १० मिनट तक टकटकी लगाए देखती रही...फिर देखते देखते उसकी आँखें भर आई.. तब तक मैं कुछ अपने काम में मसरूफ थी.....ध्यान ही नहीं दिया कि...कुछ बोल तो नहीं रही है ..,, पर कुछ कहना चाह रही थी...........बस नज़र मिलते ही.....बेवजह लिपट कर ऐसा रोई कि मुझे अपने पर पछतावा हुआ कि पिछले १० मिनट से गौर क्यूँ नही किया ......फिर जैसे कि उसे सीने से लगाकर मुझे लगा कि …..
"मैं कभी कभार इस पल को बहुत सालों से तरस रही थी "......और आज जब वो रोई तो एहसास हुआ कि, आज उसको अपनी उम्मीद्दों से परे कितना सुकून मिला होगा !!!
........... तीसरी बार वो उस एक भरोसे के साथ सिर्फ मेरे पास ही आई .... उसकी किस्मत अच्छी थी कि मैंने उसे अपने ही दर्द में महसूस किया और भरोसा दिलाया,..वरना हम कभी -कभी तन्हाई में इसी सुकून को ढूँढने कि चाह में किसी का कंधा और भरोसा ढूंढते रहते हैं......बिना ये सोचे-समझे कि बाद में वो ही भरोसेमंद निकले,, या ना निकले........ क्योंकि भरोसा और अपनापन हर किसी में नहीं मिलता!!!!!....
Truly Speaking Swt hrt..
ReplyDeleteritu ji sohle aane such hai.........
ReplyDeleteVery touching imotional description of human feelings!!! Everybody needs a shoulder to sob to live his/her life - humans are such. Many may say they are not imotional but they actually are more imotional than the ones who say they are imotional. The moment the socalled imotionless people get an appropriate shoulder they sob like anything - its only the right shoulder at the right time where the heart leaks out its heaviness.
ReplyDeleteजीवन के मार्मिक पहलू का सजीव चित्रण!!! बहुत सुन्दर वर्णन!
ReplyDeletethank you ,..Madam for reading and feel it by heart ......!!
Deleteemotions have been painted with beautiful wordings...Rituji.We respect you and your art of writing.
ReplyDeletecool...
ReplyDeleteNishabd kar diya mujhe.. Ufff dil ko chuti hue behatarin :)
ReplyDeletethnx Puneet!!!!!!!!!!
Deleteissan akele aata hai akele jaata hai, lekin akele jeena kyoun nahi sikhta??? ab aachaar banao imotion ka!!!
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