Wednesday, April 24, 2013

एक साधु समुन्दर के किनारे जा रहा था, अचानक  उसने एक केकड़ा देखा, जो पानी की लहरों पर जाकर , बार-बार वापस आने की कोशिश कर रहा था.,तब उस  साधु ने उसको बाहर लाने की कोशिश की,..पर जब भी भी वो कोशिश करता वो उसको डंक मारता,..कुछ देर में ही साधु का हाथ लहू लुहान हो गया ,..पास आने जाने वालों ने कहा कि,’कैसा मूर्ख है,...खामखा इस जीव को बचा  रहा है’,.....तब उसने अंत में अपनी कोशिश से उसको बाहर निकाल कर कहा, कि हे! प्रियजनों  वह अपनी  प्रवर्ती के  अनुसार अपना बचाव कर रहा था, और मैं अपनी प्रवर्ती के अनुसार उसको बचा  रहा था.....दोनों अपना कार्य बखूबी निभा रहे थे....,मुझे लेषमात्र भी दुःख नहीं है .!!!!!!!!
तो जिंदगी से मैंने भी इसी प्रवर्ती का अनुसरण किया है, अब उसके मुताबिक कभी दुःख-सुख या कभी फरेब मिला....,....,
जिसका दोष चाहे दूसरों को भी दिया …….,
लेकिन फरेब या दुःख देना अगर हमारे स्वभाव में नहीं है तो हम ख्वाब में भी दूसरों को तो क्या’,.. अपनों को भी आघात तक नहीं पहुंचा सकते हैं........’हाँ,’अपने  भावनात्मक और परमार्थी स्वभाव के कारण उमीद्दों से परे भी खुद आहत हो सकते हैं.......और जाने-अनजाने में भी किसी से की गयी मुहब्बत भी अगर आघात दे तब भी हमें सिर्फ अपने दर्द के अलावा  कोई भी नहीं तोड़ सकता है ...परन्तु उस आघात को भी दर्द समझकर एक  सीख के साथ आगे बढना ही ‘जिंदगी’ है,क्योंकि…..
शिद्दत से दिए हुए उन अपनों के दर्द से भी,
अब कभी वफ़ा में भी
शर्मिंदगी नहीं होगी ....
और जहाँ स्वभाव में जटिलता और मार्मिकता हो,
‘दिए ज़ख्मों का दर्द भी सीख के साथ सुकून देगा.!!!

19 comments:

  1. Ultimate whatevr u said,...Maa!!

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  2. Its just speechless :) hats off to u dear. Koi kuch bhi kare hum to jaise hai waise hi rahenge. Or jitna me jan paya hu, aap khwaab me bhi kisi ko hurt karne ka ni soch sakte

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  3. मधुमिता शर्माApril 25, 2013 at 4:43 PM

    वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
    बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
    रहीम दास जी के अनुसार:
    वे पुरुष धन्य हैं जो दूसरों का उपकार करते हैं। उनपे रंग उसी तरह उकर आता है जैसे कि मेंहदी बांटने वाले को अलग से रंग लगाने की जरूरत नहीं होती।

    और फिर यह भी कहा है:
    खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
    रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

    अर्थ: जिस प्रकार खीरे की कडवाहट निकलने के लिए खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगा कर रगड़ना चाहिए उसी प्रकार यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।

    अब आप निर्णय लें कि आपको ऊपर लिखे किस दोहे के अनुसार जी अपने जीवन को जीना चाहिए? यह प्रश्न आपके नीचे उद्धरित विश्लेषण के सन्दर्भ में है!

    तो जिंदगी से मैंने भी इसी प्रवर्ती का अनुसरण किया है, अब उसके मुताबिक कभी दुःख-सुख या कभी फरेब मिला....,...., जिसका दोष चाहे दूसरों को भी दिया …….,
    लेकिन फरेब या दुःख देना अगर हमारे स्वभाव में नहीं है तो हम ख्वाब में भी दूसरों को तो क्या’,.. अपनों को भी आघात तक नहीं पहुंचा सकते हैं.......

    प्रिय ऋतू माला जी,

    आपका लेख अति सुन्दर भावना से ओत प्रोत है पर पता नहीं क्यों आज नारी पीड़ा के प्रति बहुत अधिक व्यग्रता महसूस हो रही है! अपनी इस उग्रता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ?

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    1. मधुमिता जी ,,आपके कथन से सहमत हूँ, परन्तु कभी जीवन में में इन दोनों दोहों के अनुसरण में हमको अपने अनुसार कोई नहीं मिलता,.....कभी हम अपना रंग नहीं चड़ा पाते या कभी जिसको चाहते हैं उसके मुख से नीम का शहद भी नहीं बना पाते ???????????
      लेकिन,....ये दोनों कथन उमीद्दों से भरे हैं,..,,,,परे नहीं...तो अंतत जिंदगी में सब कुछ खोकर भी जो मुठ्टी में रेत की भाँती रह जाए , ..वो ही हकीकत लगता है........उसकी को भाग्य या अपना स्वभाव मानकर स्वीकार करते हैं!!!!!!!!!!!!

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  5. True reality of Life. God has created different flowers, fruits, animals, human beings etc. with characters detailed and difined by him and each one of those have to behave as per its characterstics.

    As far as my view towards life is concerned we should follow and practice in our life:

    ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय । औरन को सीतल करै , आपहुं सीतल होय ॥

    but eventhen I agree with respectable Ms. Madhumita Sharma ji specially in respect of now-a-days context and I think that we should follow the Doha No. 2 relating to Kheera and treatment for its bitterness when others behave irratically, without justified reasons.

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  6. पहले केकड़ा पकड़ना शीखलो फिर बचालेना !!! वैसे केकड़ा ऊभयचर प्राणी है, बेफिजूल में साधू अपना टाइम बर्बाद कर रहा था।

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    1. मधुमिता शर्माApril 26, 2013 at 5:28 PM

      प्रिय गुमनाम जी,

      वैसे तो यह प्रतिक्रिया करने का मेरा कोई अधिकार नहीं है पर पता नहीं क्यों मैं अपने आप को रोकने में असमर्थ हूँ|

      धन्य हैं वे लोग जो पंचतंत्र की कहानियों को जीवन से जोड़ कर देखते हैं और अपने जीवन में कहानियों में उद्धरित घटनाओं से सीख लेकर अपने जीवन को सुखमय बनाते हैं| इस उदाहरण के बारे में आपके विचार फिजूल प्रतीत होते हैं (बेफिजूल शब्द शायद होता ही नहीं है)सैकड़ो वर्षों से बहुप्रतिष्ठित पंचतंत्र की कहानियों का फिजूल होना संभव नहीं है.

      प्रवृत्तियों के मर्म को समझने के साथ साथ उदहारण का मर्म भी सीखने (न कि शीखने) को कष्ट करेंगे तो शायद बेहतर होगा!

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    2. क्या की कहानियों हैं, ये नहीं शिखाया केकड़ा को हात नहीं किसी और चीज से भी बाहर ले आता। पंचतंत्र से शिखो, अपने जीवन को सुखमय बनाओ हात से केकड़ा पकड़ के।

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  7. कैसे कैसे उदाहरण देते हैं, खीरे को सजा नहीं दीया जाता खाने लायक बनाया जाता है। तोडा सा भी दिमाग नहीं लगाते।

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    1. मधुमिता शर्माApril 26, 2013 at 5:36 PM

      प्रिय गुमनाम जी,

      वैसे तो यह प्रतिक्रिया करने का मेरा कोई अधिकार नहीं है पर पता नहीं क्यों मैं अपने आप को रोकने में असमर्थ हूँ|

      और फिर यह भी कहा है:
      खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
      रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

      अर्थ: जिस प्रकार खीरे की कडवाहट निकलने के लिए खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगा कर रगड़ना चाहिए उसी प्रकार यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।

      प्रवृत्तियों के मर्म को समझने के साथ साथ उदहारण का मर्म भी समझें| सजा आदि के बारे में ध्यान न दिया जाए तो शायद बेहतर होगा!

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    2. खीरे ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था, तुम्हे उसे खाने के लायक बनाना था इसीलिए सर काटा, ऊपर से बड़े खुश हो रहे हो। ये उसका immune system है जिस की वजह से वो कीड़ों को दूर रखता है। खुद तो खाने लिए बेरहमी से सर काटते हो और सजा देने का हक़ भी रखते हो। उदाहरण दिमाग लगाके दिया कीजिये।

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    3. alochana krne s aksar ham murkhta kar bethte hai ham apne kisi ek vishesh gun ko sarvasv mankar aur use mapdand k tor par istemal kar ke dusro m galtiya nikalte rhte he aur kisi wyakti ko ya uske kathno ko galat samjh bethte hai .......... ap apni practical approach rakh rhe h achi bat h but jo kathan kha gya h usko shi shii samajhna bhi hmara gun hona chahiy

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  8. I agree ! Then what is the sin of Wheat, that we first grind it then put few "mukka" to make dough then put it on a hot tawa?

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  9. Dear Anonymous,

    Though its not my right to comment on your coment but as I have been a regular reader of the blog, I feel ki,

    Aap bhee jalte tave par roti sekne k liye aa gaye!!! Wah, aap ke liye Sant Kabeer Daas Ji ka yah doha uchit hoga:

    mala pherat jug gaya, gaya na man ka pher;

    karka manka dari de, manka manka pher.

    Meaning:

    Ages have gone while moving the rosary in the hand, but the roaming of the mind has not gone.

    Therefore, give up the bead from your hand, and make your mind the bead and turn it with the name of God.

    Please try to understand the citations in context of life.

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  10. Ultimate Views.No One Can think About It..

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  11. very well written....its touching

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