Wednesday, April 17, 2013


रोज़ की तरह शाम को टहलने निकली ही थी,...थोड़ी दूर जाकर अचानक एक ठोकर सी लगी और चोट लग गयी....ज्यादा ख़ास नहीं थी पर पता नहीं बेवजह इतनी देर तक,..हिचकियों के साथ खूब,एक बच्चे कि तरह रोना आया...जैसे कि पूरे दिन से ही रोने का बहाना ढूंढ रही थी.... और लग भी रहा था कि दिन क़यामत की तरह भारी गुजर रहा है...............और जैसे की दर्द अब पैर में नहीं कहीं और था और इतनी सी बात पर कितना रोना आ रहा था ,..फिर दिल में हजारों सवालों के साथ ख्याल आया कि जिंदगी में कभी कभी पत्थर जैसी कठिनायों से खराश तक नहीं आती,…लेकिन कभी एक ज़रा सी बात पर अन्दर से कितना बिखरा सा महसूस होता है .. वक़्त -बेवक्त मन भारी रहता है,...उनके लिए जो ना जाने क्यूँ उम्मीदों से परे जहान दिखाकर दर्द और फरेब दे जाते हैं …‘वो जिनको हम..,ख्यालों में बेवजह भी दर्द तक नहीं होने देते !!!जिन पर ऐतबार करके ना नफरत की वजह मिलती है और ना बेपनाह चाहने का सिला..!!!!
जिंदगी में हर नफरत में दर्द नहीं सीख ज्यादा है इतनी नफरत  कि गर कभी विश्वास से कोई देखे भी तो,....अन्दर से बहुत बिखरा सा महसूस किया है… और आज ये ही कितने दिनों का बिखरापन और भारीपन  जरा सी चोट के बहाने से ही सिसकियों के साथ निकलकर तन्हाई में ही हल्का भी कर गया,,,, खामखा जिनके साथ की उम्मीद को बेवजह मन में रखकर हम  भारीपन महसूस करते हैं......
अब जिंदगी में कभी नहीं मजबूर होगा मन इस तन्हाई में भी…,
दोहरा कर किसी की बातों को कभी हंस लेंगे और कभी रो लेंगे!!!

8 comments:

  1. Apne man me jo dard or tanhai thi.. Wo kisi ko dikhati na thi.. Sabke samne majboot bankar hasti muskati thi.. Par jyo hi.. Mauka mila.. Andar ki gutan ne.. Pathar ki chot ki aad le.. Apne man ki bat aansuo me keh .. !! Adhbhut..

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    1. Shukriya.....for undaerstand n feel the unspoken words!!!!!!!!!

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  2. जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को
    और दे जाते हैं यादें तनहाई में तड़पाने को....

    किसी गीतकार के गीत के बोल जीवन की सच्चाई को कुछ इस तरह वर्णित करते हैं... पर वल्लाह! आपके शब्दों में जीवन की गहराई कुछ ज्यादा ही गहरी प्रतीत होती है| बहुत अच्छा वर्णन किया है!

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  3. "एक वोः थे जो खुशी कि तलाश में मर जाते थे,
    एक ये है जो गम-ए-ज़िन्दगि मे जिये जा रहे है "

    ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
    जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया

    यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
    आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

    कभी तक़्दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
    मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

    जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का
    मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

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  5. उन पे तूफान को भी अफ़सोस हुआ करता है,
    वो सफिने जो किनारों पे उलट जाते हैं,

    वैसे पत्थर को भी अफशोस हुआ होगा !.....है ना।

    Good one.. Carry on...

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    1. lekin main wo SAFINA hoon.....,jo beech lahron mein hi lurak chuka hai!!!!!aur ab oos chattan ki tarah ho chuka hai,...jis par toofani Laheren bhi sar patak kar wapas chali jati hai....!!!!!!!

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  6. kagaj ke tukde per utara hai jo dard apna......to laga ye kagaj hee apna......

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