रात की तन्हाई के सन्नाटों में अक्सर सितारों से आवाज़ आती है,
यादों में किसी के लिए करवटें बदलकर भी कुछ नहीं मिलता …..
दिल तो रहेगा हर पल खाली, और आँखें .....हमेशा नम ही रहेंगी ,
ज़हन में हर पल रहेगा,बेवजह भी निभाकर किसी से कुछ नहीं मिलता ..
दर्द और खुदगर्जी के सिवाय जिसके पास और कुछ भी ना हो,,,,
उसके दर्द को...,हमदर्द बनाने पर भी कुछ नहीं मिलता !!!!
गर खुदगर्जी भी हो .,तब भी.. बिना चाहे, ‘वफ़ा तो क्या’
‘उमीद्दों से परे’ …भूले से उनसे भरोसा भी नहीं मिलता !!!!!!???
खुदगर्ज़ हैं जो, उनसे अब शर्मिंदा नहीं होगी मेरी वफ़ा, क्योंकि
एहसास हुआ,जहाँ दोस्ती गहरी हो, ज़ख़्म भी वहां गहरा मिलता है!!!!!.
यादों में किसी के लिए करवटें बदलकर भी कुछ नहीं मिलता …..
दिल तो रहेगा हर पल खाली, और आँखें .....हमेशा नम ही रहेंगी ,
ज़हन में हर पल रहेगा,बेवजह भी निभाकर किसी से कुछ नहीं मिलता ..
दर्द और खुदगर्जी के सिवाय जिसके पास और कुछ भी ना हो,,,,
उसके दर्द को...,हमदर्द बनाने पर भी कुछ नहीं मिलता !!!!
गर खुदगर्जी भी हो .,तब भी.. बिना चाहे, ‘वफ़ा तो क्या’
‘उमीद्दों से परे’ …भूले से उनसे भरोसा भी नहीं मिलता !!!!!!???
खुदगर्ज़ हैं जो, उनसे अब शर्मिंदा नहीं होगी मेरी वफ़ा, क्योंकि
एहसास हुआ,जहाँ दोस्ती गहरी हो, ज़ख़्म भी वहां गहरा मिलता है!!!!!.
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पत्थर से दिल लगाया और दिल पे चोट खाई!!!
ReplyDeleteइतनी संजीदगी भरी रचना आपके ज़हन में कहाँ से आई?
बहुत ही द्रढ़निश्चयी रचना है!!! जीवन को द्रढ़ता से जीने में ही समझदारी है क्योंकि आज कल
"खुदा और उसकी ख़ुदाई
बिलकुल भी समझ न आयी"
संजीदगी भरा साधुवाद!!!!
मधुमिता जी ,, पहले तो शुक्रिया की आप निरंतर मेरे लेख की पाठक हैं...
Deleteऔर आगे आपको टिप्पणी पे यही कहना चाहूंगी कि...,
मानो या न मानो ये ही एक हकीकत है, ख़ुदा और खुदाई यहीं पर हैं,
बस, एक बार दिल लगाकर देख लो ख़ुदा,और ज़ल्लाद दोनों ज़मीं पर है.
sach h "jahaan dosti gehrii hoti h zakhm bhi wahaan gehra milta h " lekin ham bar bar y kyu bhool jate h ki saccha pyar matlab " kuch na mangna" fir bhi ham wafai mangte hai lekin y to kitabi bat hai sach to yahi hai kuch na kuch mangna hi hamari fitrat h chahe wo kuch bhi ho
Deletewhoever you are.....I agree with you .but what to do with human nature.......!!!!!!!!!!
DeleteI know there is no expectations in True Love.....like with God,.....we dont ve any....
but....Dil to Dil Hai ....iska aitabaar...kahin na kahin dokha de jaata hai.......?????
yes what to do with human nature i think this is the big question of life for which we r wandering here and there
Deletenice written....
ReplyDeletewah wah wah.. mast hai boss..
ReplyDeleteperfect lines.
ReplyDeleteBahut khoob !!!
ReplyDelete.....shukriyaa!!!!
DeleteDard or khushi to jaise ek paheli hai....
ReplyDeleteरो पड़ी चूड़िया और मिट गये सिंदूर,,,तू ही बता ऐ खुदा इसमें मेरा क्या कसूर,,,लोग कहते हैं की भरोसा रख उपरवाले पर,,,गर ऐसा है तो तूने क्यों किया 'उनको' मुझसे दूर ?
ReplyDeleteये चुभन अकेलेपन की, ये लगन उदास शब् से,
ReplyDeleteमैं हवा से लड़ रहा हूँ, तुझे क्या बताऊँ कब से,