Saturday, April 27, 2013

चाहे मौसम की तरह कितनी तब्दीलियां आयी हैं खुद अपने आप में
लेकिन किसी अपने को बेवजह याद करने की आदत अब भी बरकरार है
मेरा कुत्ता "विस्की"..अचानक  बहुत बीमार हुआ,...१० महीने में बारलेकिन उस मूक जानवर से इतना ज्यादा प्रेम... कि बच्चों के विवश करने पररात ११ बजे चाहते हुए  भी डॉक्टर के पास ले गए ......., वो सिर्फ बिना कुछ कहे, पर एक उम्मीद से अपने शारीरिक व्यव्हार से ही  अपनी परेशानी दिखा रहा था,....और सिर्फ १० महीनो में इतना लगाव, कि मैं उसको डॉक्टर के पास ले जाकर ही अपने आप को तस्सल्ली दे पाईघर आकर मन उसके लिए बहुत खुश था, और अपने लिए ग्लानि से भरा कि हम कभी कभी जिंदगी में दोस्तों और रिश्तों को  बेपनाह मोहब्बत देने  के बावजूद,.... अपना सर्वस्व देने के बाद भी,.... कुछ भी जताने  लायक भी नहीं होते कि.... वो हमें टूट कर प्यार करना तो दूर .... सिर्फ समझ ही ले... जिनको  हम जिंदगी भर अपना मान कर चलते हैं???
कभी कभार ऐसा लगता है कि काश! ,..रिश्ते या दोस्ती  भी ऐसे ही होते....जैसे कि जानवरों का प्यार  या फिर गणित के वो फार्मूले,' जो जहाँ जरुरत हो ,.... फिट करो और समस्याओं को एक दम हल करो ......मतलब कि.....किसी और तर्क की जरुरत ही पडे......!!!!
क्योंकि कभी कभी जब सब कुछ बिगड़ता है तो मन  व्यथित हो पड़ता  है इन सब बातों से,... कभी कभार लगता है की सभी ने हमारे धैर्य को केवल आज़माया ही है.,अपनाया कभी नहीं??
... और हर धैर्य की एक सीमा जरुर  होती है ...,.पर इन्तहा नहीं!!!!
और
  समय के साथ ये धैर्य भी हमें चिकने   घड़े की तरह बना देता है जिस पर किसी भी भावनात्मक या भावनारहित कथनों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता .... और कभी एक ऐसे मोड़ पर जिंदगी ले आती है कि चाहे फिर आगे .... उम्मीदों से परे भी....., गर कोई प्यार से देखता या समझता भी है तो,,,,,,.. तो आँखें हमेशा पुर-नम ही रहती हैं,,,, जिनमें केवल रह जाता है एक बिखरेपन का एहसास और एक अनकहा अविश्वास!!!!

Wednesday, April 24, 2013

एक साधु समुन्दर के किनारे जा रहा था, अचानक  उसने एक केकड़ा देखा, जो पानी की लहरों पर जाकर , बार-बार वापस आने की कोशिश कर रहा था.,तब उस  साधु ने उसको बाहर लाने की कोशिश की,..पर जब भी भी वो कोशिश करता वो उसको डंक मारता,..कुछ देर में ही साधु का हाथ लहू लुहान हो गया ,..पास आने जाने वालों ने कहा कि,’कैसा मूर्ख है,...खामखा इस जीव को बचा  रहा है’,.....तब उसने अंत में अपनी कोशिश से उसको बाहर निकाल कर कहा, कि हे! प्रियजनों  वह अपनी  प्रवर्ती के  अनुसार अपना बचाव कर रहा था, और मैं अपनी प्रवर्ती के अनुसार उसको बचा  रहा था.....दोनों अपना कार्य बखूबी निभा रहे थे....,मुझे लेषमात्र भी दुःख नहीं है .!!!!!!!!
तो जिंदगी से मैंने भी इसी प्रवर्ती का अनुसरण किया है, अब उसके मुताबिक कभी दुःख-सुख या कभी फरेब मिला....,....,
जिसका दोष चाहे दूसरों को भी दिया …….,
लेकिन फरेब या दुःख देना अगर हमारे स्वभाव में नहीं है तो हम ख्वाब में भी दूसरों को तो क्या’,.. अपनों को भी आघात तक नहीं पहुंचा सकते हैं........’हाँ,’अपने  भावनात्मक और परमार्थी स्वभाव के कारण उमीद्दों से परे भी खुद आहत हो सकते हैं.......और जाने-अनजाने में भी किसी से की गयी मुहब्बत भी अगर आघात दे तब भी हमें सिर्फ अपने दर्द के अलावा  कोई भी नहीं तोड़ सकता है ...परन्तु उस आघात को भी दर्द समझकर एक  सीख के साथ आगे बढना ही ‘जिंदगी’ है,क्योंकि…..
शिद्दत से दिए हुए उन अपनों के दर्द से भी,
अब कभी वफ़ा में भी
शर्मिंदगी नहीं होगी ....
और जहाँ स्वभाव में जटिलता और मार्मिकता हो,
‘दिए ज़ख्मों का दर्द भी सीख के साथ सुकून देगा.!!!