Friday, March 28, 2014

  

सहारा ढूँढ रहा था..मैं हंसी ज़िंदगी के लिए..;
एक अज़नबी का साथ चाहिए रहगुज़र के लिए;
..'
कि कोई रहमराज़  ना मिलता....!!!
गुज़ार दिया जो राहों से हमने सफ़र अपना..;
गए दिनों बेज़ार,,बेज़ान-सा रहा दिल अपना.
कि 'बेखुदी ,तन्हाई ,आवरगी ,.किसको सुनाएं
हुए ऐसे  हरदम .'अपने साये से ही भागे जाएँ ;
.....'
कि कोई रहमराज़  ना मिलता....!!!
अपनी  परछाईं तक से अक्सर ख़ौफ़ लगे...;
फिर ना हो जाऊँ बिखरा-सा तनहा क्यूँ कर लगे;
दिन भर में ख़ुद की सुनकर  ,ख़ुद से कहके;
दिल थक-हारा है…'सब पे ऐतबार करके..;
......'
कि कोई रहमराज़ ना मिलता....!!!
ज़िंदगी जैसे जाल बनकर रह गयी है ख्वाबों में ;
परछाईं भी साथ...ना छोड़ दे कभी इन चिरागों में;
उम्मीद से परे..'अब क्या दोस्तों-रक़ीबों को आज़माए;
तमन्ना यही..'ख़ुदा अब मेरा रहनुमां बन क़रीब आये.;
........'
कि कोई रहमराज़ ना मिलता....!!!

Saturday, March 22, 2014

'ख़ालीपन...'कभी कोरे काग़ज़ जैसा एहसास लगे...
जिसमें तस्वीर,,तहरीरों की कभी स्याही भरते रहें.;
गुनगुनाते रहें ,;लिखते रहें ..;या फिर मिटाते रहें ...!!
इतने सवालों के साथ कैसे हो गए इतने शिद्द्त पसंद हम...
खुद से मोहब्ब्त करना भूल गए हम..
..
या खुद से प्यार करके थक चुके हैं हम..;
कि रंज भी हो तो ..'लगे क्यूँ पलकें भिगोते 
रहें...??
अपने-ग़ैरों को तो आज़मा के देख लिया..
वफ़ा की ख़ुश्बू में दिल जलाकर देख लिया...
रंजिशों की गुफ़तगू से मुब्तिला होकर देख लिया...;
दरबतर, ज़िंदगी को 
क्यूँ दर्द-ए-सुकून से आगाज़ करते रहें.?
आज चाहूं कि,'निगाह-ए-सितम में हो वैसी पुरानी हयात.;
क़ाफ़िर...दिल करना चाहे फिर हठ वाली वो बात...;
उम्मीद से परे..'उसी एक अंज़ाम-ए ख़लिश में..
...
छुपी उस एक कशिश की कोशिश में...
..ये दिल-ए-बेख़बर ख़ता मोहब्ब्त की हर ,बार करता रहे.............;
....................बार बार  करता रहे.............;!!!

Friday, March 14, 2014



इस फाल्गुन के प्रेम ,रंग और उल्लास भरे  मौसम में अजीब कशिश के साथ , शिद्दत से, सिर्फ उस 'श्यामल श्रीकृष्णका ध्यान और नाम ही जुबां पे आता है, वो श्याम रंग, जो जिस पर भी चढ़ जाए,,’तो उतरना नामुमकिन है क्योंकि इन रंगों के बादल में,.'वो  शोख-चंचल, अल्हढ़ बचपन और कुछ भूली बिसरी यादें ..जो उम्मीदों से परेहोती हैं 'कृष्णमय' सी प्रतीत होती हैं. कुछ पंक्तियाँ जो कभी मेरी माँ इसी बाँकेके लिए अक्सर  गुनगुनाया करती  थीं ,,जिनमें श्रीकृष्ण की चन्द्रमय,,चंचल ,कटाक्ष..,चितवन..,मोहिनी सूरत का वर्णन है...;
 
होली की शुकानायें

'सुकुमारिता देख कुमारी लजै...
...सुकुमारिता देख कुमारी लजै..;
छलछंद करो चित्चोरन  के..;
..जमुना तट गोपिन रोकत हो...;
कर-कौतुक भोंह मरोरन के..;
अति चंचल नैनं होहरि हंसों ..
..अति चंचल नैनं होहरि हंसों ..;
भव भाव करो रस भोरन के;
अरे!!'नंदलला जो तुम होते 'लली'..;
..'तो गरे कट जाते करोरन के;;;.......
........गरे कट जाते करोरन के....!!!

Saturday, March 1, 2014

आज कुछ अपना मिज़ाज़ जुदा-जुदा सा लगता है.. 
...इस तन्हाई में और ना हो जाऊं बिखरा सा
 
'कि तन्हा सिमेटने से भी डर लगता है
???
कभी तलब तो
, कभी ख़फ़ा सी लगती है ये ज़िंदगी ..;
जाने क्या लगती है तू मेरी
,,'कैसी धरोहर है ये ज़िंदगी?
हर पल लगे
यहाँ हर किसी पे एक नक़ाब है 
...
पर हर चेहरे में बे-परवाही,...'एक रूखापन.....;
...बद-मिज़ाज़ी का ओढ़े,,हर किसी का रिवाज़ है.!!
.कभी ये सफ़र
 'लगे एक खलिश,..एक सज़ा है.,
.....फिर दूजे पल लगे
 ,,कि अभी...
.....होश खोने के दिन नहीं
,...;'ज़ब्त खुद को करने के दिन नहीं ...;
उम्मीदों से परे
' उस एक पल को,'जिसे हम कह्ते हैं ज़िंदगी;
ख्वाइश है कि निकले अब बची उमर की मुसाफ़तें...
; 
....सिर्फ उन रहगुज़र
,,,रह-नुमां दोस्तों की नज़र...  
ना छोड़ा दामन मेरा वहाँ,...जहाँ छोड़ा अपनों ने परायों सा  ,.
हताश भरे किसी भी पल को .खुशनुमां,,,ग़ाफ़िल*..;  
,..सदरंग  बनाया ,मेरे इर्द-गिर्द 'अपने ही सायों का...!!! 

*ग़ाफ़िल-----बेख़बर 
......Dedicated to My Friends Nishita, Meenu, Saroj ,Gauri & Devika !!