Thursday, April 9, 2015

ना जाने कहाँ बिसर  गए....
..हरे सुनहरे पत्ते वो ज़िंदगी के....!
गए दिनों से कुछ अलफ़ाज़ नहीं मिल रहे,
कोई सोच,कोई ठोर,,कोई राह..
किसी भी ख्वाब,,,कोई हकीकत का ज़िक्र..
गुज़रे पन्नों की वो ज़र्ज़र किताब लिए
खुद से खुद कश्मकश ज़ारी है;
हर वक़्त मंन ना जाने क्यूँ भारी है
सोई-जागी इन  आँखों की पहचान किये
अंदर की  सुबह से मिलने की तैयारी है
उम्मीदों से परे' परास्त-खोई हुई इच्छाओं
उमंगो,रंगों से हरदम ये दिल भरा है..
….
भरा है वो बिखरे मखमली सुर्ख़ लाल रंग लिए
....
स्याही के कई इंद्रधनुषी रंग लिए 
'ज़िंदगी के हर पन्ने पे उतारने की ख़ुमारी है.....!!!!