Sunday, December 22, 2013

 'ये ज़िंदगी आज किस मुक़ाम पे ले आयी...
...कि वो दिलकश नज़ारे कहाँ गए ???
कि फूल तो खुश हुए ,..जाने वो सितारे कहाँ गए ???
वो दौर..जो ज़िंदगी का नज़रों से निहारते ...
वो निखरे सपनो के होश के धारे कहाँ गए ??
वो तकदीरें ,,,जो कभी ठहरी औस  थी एक पत्ते पे;;
कब फिसलकर पत्ते से ...मायूसी के मारे कहाँ गए.??.
इन सबसे और भी ना हो  जाऊं ,,मैं बिखरा-बिखरा सा..;
कहाँ वो यार,..वो काफिले थके-माँदे कहाँ  गए??
कोई तो  आये कि, सोचेंगे अब उन 'उम्मीदों  से परे...
बेचैन से हो चुके हैं,,इस पले यादों  के  दर्द  से ..;
क्या कहिये कि,'वो अरमान भी इस दिल के मारे कहाँ गए ??

Wednesday, December 11, 2013

बहुत दिन हुए ,,,लग रहा है  कि जैसे,,,
एक सैलाब की तरह हलचल सी है दिल में....
एक थमे तूफ़ान की सी ख़ामोशी...;
,,,
बातों को जैसे चुप सी लग गयी है???
कुछ छुपे राज़,..उलझी-सुलझी कशमकश ,,
कुछ अनकहे एहसास ,,,कुछ रंज़िशें ...
कुछ मुसाफ़ितें ,..वो टूटती-जुड़ती उम्मीदें,,,,
'
उम्मीदों से परे,..वो पर'….वो चाहतें...
वो वादों और रिश्तों की रुख्सत....
...
यादों में कब सिमट कर रह गयी???
ज़हन में इतने ख्याल और सवाल लिए...
इन अज़नबी बसे लोगों के शहर में,..
वो असफ़ज़ाई  तसवीरें  ख्यालों की ...
...
ये लफ़्ज़ों का जाल बुनकर अब क्या करना???
गर,..,मुद्दतों से अपने खफा भी हैं...
अब फिर से हर बात बढ़ाकर क्या करना....
...'
दिन यादों में जो अच्छा गुज़रता है...
...
करीब अब हकीकत में कोई हो...'ना सही;;;
तब तक...'वो यादें भी भुलाकर क्या करना….???

Thursday, November 28, 2013

वो दिन के चहकते उजालों,,,,'उन शाम के खौफ अंधेरों में .....,
वो अंदर का सहमा सा चेहरा,...’अपनी तन्हाइयों से बात की है;..
बेसबब सन्नाटों में शोर इतना,.'अक्सर   सुन पाते दिल की कुछ नहीं!
ज़िंदगी ने सब कुछ है दिया,...एहसास क्यों अब होता तक नहीं....;?
उसको क्या खबर मेरे दिल की,...'क़ि अब तक उसके बगैर,...;
ज़िंदगी तो अब तक कट रही है,.. लगता है,'जिया कुछ नहीं??
कभी ख्यालों में आया ,,कि उसके सिवागर मांगू...
हाथ तो दुआ में उठेंगें ,..ज़हन में होगी अब दुआ कुछ नहीं...!!!
उम्मीदों से परे',,वो रतजगे अब कर लिए हैं जो कबूल,...
चाहतों में कभी एक पल का जगनालगता अब कुछ भी नहीं???
देखे गर कोई मोहब्ब्त से,...जाने दिल भी अब धड़कता है,'कि नहीं?
इसका सबब भी इन दिनों अब खुद पता लगता ,.. कुछ नहीं..??
ना जाने क्यों ढूंढ़ते फिरते हैं,..परछाईओं में कहानी अपनी....
तन्हाइयों से गुफ़तगू के सिवा,...;....,'रहा जब कुछ भी नहीं !!!!!
तिस पर भी,' इस ज़िन्दगी के खट्टे मीठे  पन्ने  पलटने के  बाद...,
तन्हाईओं से परे भी,'..एक चाहत ज़हन में हरदम हुई है ,.;
उम्मीदों से परे भी ,'छूती है बेख़बर ,जो मुझे हल्के सरग़ोशी से..;
...'ज़िन्दगी के वही पन्ने पलटने  के बाद ,'महसूस हुई है ,...;
तो,','ए ज़िन्दगी !!  कि अब और अभी से नया तज़ुर्बा करें....
......,कि,'दिल अब भूलना चाहता है ,'वो रुख़ी तसल्लियाँ और पुरानी कहानियाँ ...... !!!!??