Saturday, March 30, 2013


एक पत्ते पर ठहरी हुई  सुबह की ओस की बूँदें ,.जिंदगी में उस एक ठहराव की तरह कभी मालूम होती हैं जिसमें बहुत याद आते हैं वो,.'वो हमें कभी भूल जाने वाले!!!!

और जो कुछ पल बाद वो बूँदें उसी पत्ते से फिंसल कर मिटटी के साथ मिलकर उस तकदीर की तरह लगती है ,जो हंसते हुए  चेहरे पल भर में मायूसी में बदल देती है, शायद तकदीर को रिश्तों और चाहत की पहचान नहीं होती है ???और शिकायत हम दूसरों से करते  हैं क्योंकि उन्ही में सुकून और मोहब्बत ढूँढ़ते रहते हैं...
किसी को पाने की चाह अपने को भी भुला देती है......अपनेआप को , अपने वजूद को, अपनी  हंसी को भी, अपने वो कभी कभार मिलने वाले सुख-चैन को भी..... और लगता है कभी किसी को अपना बनाने की चाह में अपनी कदर भी खो देते हैं और आखिर में ऐसा पल आता है जिसमे  दिल को हकीकत के सिवा सब कुछ अच्छा लगता है........ और सिर्फ उन यादों के पलों में ही गुम होना अच्छा लगता है उस एक बचपन के उस खिलोने की तरह,....जिसको जब जी चाहे उठाकर अकेले में भी खेल लो!!!! क्योंकि

उम्मीद से परे यादें होती हैं जिनके पास
तनहा होकर भी वो कभी तनहा नहीं होते.
ढूँढ ही लेते हैं अपने ही लफ़्ज़ों  में फसाने भी
और अपने ही लम्हों में ज़माने भी ....!!!!!!!!!!!

Monday, March 25, 2013


इस फाल्गुन के प्रेम ,रंग और उल्लास भरे  मौसम में अजीब कशिश के साथ , शिद्दत से, सिर्फ उस 'श्यामल ‘श्रीकृष्ण’ का ध्यान और नाम ही जुबां पे आता है, ….वो श्याम रंग, जो जिस पर भी चढ़ जाए तो उतरना नामुमकिन है…,क्योंकि इन रंगों के बादल में,.. वो  शोख-चंचल, अल्हढ़ बचपन और कुछ भूली बिसरी यादें जो उम्मीदों से परे होती हैं ,'कृष्णमय' सी प्रतीत होती हैं. ,.. कुछ पंक्तियाँ जो कभी मेरी माँ इसीबाँके’ के लिए अक्सर  गुनगुनाया करती  थीं .....
होली के रंग, कृष्ण के संग
बाजि बौरानि  बाजि,देखने को द्वार धाईं,
बाजि अकुलानि, सुन बंसी  गिरिधर की. .
बाजि नाहि बोले ,बाजि संग लागि डोले,
बाजि करत किलोले,बाजि सुधि नाहि घर की                        
बाजि नाहि ओढ़े चीर, बाजि नाहि धरे धीर ,
बाजिन के उठे पीर, बिरह भवंर  की ….
बाजि कहे बाजि बाजि,बाजि कहे कित बाजी,
बाजि कहे बन बाजि, बंसी गिरिधर की ..!!!!

होली की शुकानायें……………………

Wednesday, March 20, 2013


  ‘क्यूँ ,और कैसे ,ज़हन और यादों  में उतर जाते हैं वो ,,,,
.वो जिनका साथ भी मुक्कद्दर में नहीं लिखा होता !!!!
किसी ने खूब कहा है कि," मोह्ब्बत्त की गर इन्तहा नहीं कोई तो दर्द का भी हिसाब क्यूँ रखें!!!!
…क्यूँ किसी भी दर्द को,...एक अनुभूति के साथ.,,,,उस अनकही भावनाओं के साथ ,..एक अन्त के उजाले की तरह बरकरार रखूं …क्योंकि ये दुनिया ,और उसमें भी ‘अपने , गम तो देते हैं …पर उसमे शरीक होना तक भूल जाते हैं कभी कभी..........इस दर्द को लेकर खामखा  परछायिओं के पीछे भागते  रहते हैं हम...सिर्फ एक सुकून और ख़ुशी के लिए............जो कहीं कहें हमारे अन्दर ही होता है  और ढूंढते लोगों में हैं!!!. लेकिन इन  सब बातो  से हालात नहीं बदलते…’,, ‘हाँ’,ना चाहते हुए भी अपने ही होंसलों में भी कमी सी जाती है..... !
कभी  कभार लगता है की बस ख़त्म  हों ये सब जिंदगी में यादों और दर्द  का रोज़ आना जाना ,,खुद को भी तसल्लियाँ दे-देकर हारा सा महसूस करते हैं!, पर इनके बगैर भी जीना,नामुमकिन सा लगता है ,,,,
चाहकर भी इनसे दूर होने की कोशिश करें, पर हकीकत में …औरों की तरह ,,,ये तनहा कभी नहीं छोढ़ती हैं....एक जूनून की तरह सवार रहती है दिल और दिमाग पर,....अब चाहे  वो अच्छी हों या बुरी,.....! ?
मेरे बचपन की याद में मुझे अपनी "माँ" जैसा कहीं कहीं कठोर ..एकदम 'नारियल की तरह'..... नहीं बनना था, पर आज उनके जाने के बाद,,,जब मैं उनकी जगह हूँ तो जैसे की ,उनकी याद ही मेरे भीतर एक अंश बनकर रह गयी है............काफी मामलों में मैं उनकी तरह नहीं हूँ पर काफी हद्द तक मैं उनके जैसा बनना चाहती हूँ ,....किसी के दूर होने के बाद ही उसकी एहमियत का अंदाजा उसकी यादें ,बातें  और उसका मौजूदगी भरा एहसास ही कराता  है और जो हकीकत में उम्मीदों से परे होता है,....जो कभी एक हलकी सी मुस्कराहट या आंसुओं और दर्द के साथ महसूस होता रहता है…......
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जिंदगी क्या है एक यादों का दरिया है
रहें कभी इन्ही यादों में ये  दिल करता है.....
जिंदगी में याद के साथ ख़ुशी और गम भी ही मिले हैं,
अब गुम हो जाएँ किसी भी मोढ़ पर ये दिल करता है…..
अपना जिसे भी समझा वो ही दूर हो गया,,
अब तो हर किसी से बिछर जाने को दिल करता है..
कितने ज़ख़्म खाएं हैं सिर्फ अपनों  से हमने,
अब पत्थरों से  सिर्फ दिल लगाने को दिल करता है…
ये जिंदगी शायद आगे  अब  ना रास आएगी ,
ना जाने क्यों अब किसी और दुनिया में खो जाने को दिल करता है!!!!!!!!!!
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