Sunday, August 24, 2014

...तुम आज यहाँ होती ना जाने क्या क्या कहती..
किस किस तरह से खुद को तुमसे समझती..
,,,बहलाती,,मनवाती,,,,कि तुम हो कहाँ?
..फिर तुम कितना मुझे पुचकारती,...
कभी उल्हाने,,,तो कभी शाबाशी...
कभी ढांढस ,,,तो कभी कोहली भरती...
कहाँ गयें वो 
भरोसे हाथ..'कि ना जाने  आज....
..फिर आँख में दो आंसू छलक आये....
कोई ये बताये कि वो अच्छी माँ कहाँ से लाएं...?
बहुत बिखरा,,,टूटा,,,उलझा,,,कश्मकश
दर्द महसूस है आजकल...कि  कहाँ  हो
बस्ते से ज्यादा 
अब ये ज़िंदगी का सबक...
उलझता जा रहा है कि कहाँ हो...?
.उम्मीदों से भरी ये धुंदली परछाइयाँ...
और उम्मीदों से परे वो सबल तुम ..कहाँ हो,.
..सहरा में पल बीते रहे हैं इस तरह,,
वो सुकून की नींद तेरे बाद उतरी ही नहीं ....
ऐसे हसरत से आँखे तकती है आसमान को यहाँ
आजकल चैन क्यों नहीं पड़ता मुझे...कि कहाँ हो ?
क्या एक शख्स ही था ज़िंदगी में यहाँ ...
कि इस कश्ती को कहीं साहिल ना मिल रहा....
जो बना देती थी तूफ़ान को कभी किनारा...कहाँ हो.
सिर्फ एक पल के लिए ही सही...कि एहसास दिला दो कि तुम..यहाँ  हो .
यहीं कहीं हो,,,,,क्या पता क्या खबर....;
कुछ देर ही सही बहल जाउंगी,,और चैन से सो जाउंगी....!!!

Monday, August 4, 2014

आज अंदाज़-ए-मिज़ाज़ मेरा कुछ जुदा-सा लगे
किताब का वो मुड़ा वरक़ यूँ छोड़ने का जी करे;
आज बिखरे पलों में मिली जो फ़ुरसत..
कब आकर टकराईं वो अजनबी आँखें उसकी..;
वो शोख़ निग़ाहें 
उसकी वो मुसलसल चेहरा मेरा;
उस ख़ामोशी में गूँजती वो तर्क-ए-गुफ़्तगु उसकी;
मेरी शायरी में एक ग़ज़ल मुक़्क़मल करती हुई; 
कुछ पलों में कहती,'वो अनकही कहानी उसकी.!
तार्रुफ़ में कब हुए करीब,'तो सवाल-जवाब करती;
….वो महताब-ए-जुनून बातें उसकी.....!!
आँख-कानों से छिपा ..वो खूबसूरत अफ़साना..;
कि चंद पलों में सिमटते वो बे-लूस अलफ़ाज़ उसके..!
आज मुझे देखकर यूँ कहने लगे मेरे एहबाब’…;
तनहा होकर भी आज चहरा क्यों आफ़ताब सा लगे..,!
कुछ तो हुआ है या ‘कहाँ की बात है ज़ानिब ..;
कि पुराने दरख्तों के परे दम निकलता सा लगे..;
…कि जी चाहे अब...उन अश्कों, यादों के परे
‘कोई हो जो बिखेरे,,,,अब छिटकती चांदनी मेरे हिस्से की..;
…कि ज़िंदगी के आते सफर में ....उम्मीदों से परे' 
अब उन बिखरे ख़्वाबों,,ख्वाइशों का इन्तख़ाब होता सा लगे ....!!!


वरक़--पन्ना
एहबाब -दोस्त
इन्तख़ाब-- चयन