Friday, October 25, 2013

...वो कुछ कही अनकही बातें उसकी,,,,
वो कुछ कहकर हर बात को जताना मेरा,,;;
क़ि, कभी तो कुछ हक़ीकत लगे उसको,,
..और ‘वो सब कुछ कह-सुन कर भी ,,,
ना समझने की अदाएं दिखाना उसका ??
इसी गहमागहमी..कशमकश के जाल में,,
कभी सुलझना  मेरा, तो उलझना उसका???
कब...किसी एक मोड़ पर, तनहाई के परे,,,
इसी अंदाज़ को लिए,
बीत जाये अब जिंदगी
ये ही सोचकर बेख़बर मुस्कुराना मेरा,,,,
....और ख़ुद ही से टकराते रहना उसका????
जब से हुई, उससे तर्क-तार्रुफ़ 'मेरी गुफ़्तगू...;
कब अपने लिए ही दुआ मांगने लगी 
ज़िन्दगी !!
उम्मीदों से परे,..बेसहारा जब मोहब्बत कर गयी ...;
फिर उन्हीं जज़्बातों का मुझे, सहारा देने जा रही ज़िन्दगी......!!!


Friday, October 18, 2013

जो सारे दिन की थकान का इलाज थी तन्हाई,,,
वो बेबस से 'दिल के सन्नाटों का शोर,.....
अपनी वो 'मैं' की कशमकश ,जो रही तन्हाई,
उम्मीदों  से परे', लम्हा-लम्हा पली वो तन्हाई....
उस ठहरे हुए 'पानी में जैसे..,,
..कभी कंकर से जो कोई हलचल हो,,,,,
..यूँ कभी खामोश सी उस तन्हाई में,
कोई 'छम से आ जाये तो, क्या हो????
एक जाना पहचाना सा अजनबी चेहरा,,
...जब करें आँखें  तलाश उसे,,,;
कभी 'वो मेरी तरह उदास सा लगे ,,,
और जो कभी आँख बंद  करूँ तो,,
यहीं,,,कहीं 'आस-पास सा लगे?????
आज जब नींद जो उचटी, तो हम ये जाने,,,;
कभी जिंदगी जब 'ख्वाब में सिमट जाती है,...
आहट किसी के होने की, 'ख्वाब में ही बस जाती है.!!!!!!!

Saturday, October 12, 2013

कभी उन बीते लम्हों की कसक  देती  है ये जिंदगी..
परछाइयों को चुभन की तरह  तलाशती  है जिंदगी??
आसपास की कडवाहट ,इतने शोर,,भीड़ के बावजूद,..
सन्नाटों में अपनी ही सदायें सुनाती  है जिंदगी !!!
कभी वो एक पल गुमां,'वो छम से दिल में खनक,,
कब,किसी के मीठे ख्यालों में लाकर’,.’दूजे पल;
तनहा ,मायूस,,आँखें नम कर देती है ये जिंदगी??

दो पल का वो सुकून  देकर,,कबकहाँकिस मोड़ पर
उम्मीदों से परे,,,..'मुड़ जाती है ये जिंदगी.... ???
गोया',,,हम  तो खुश थे अपनी वीरानियों में ....
तुझे  कब कहा ...गले लगा ले,'   जिंदगी!!!
जाने कैसी और किस की धरोहर है ये जिंदगी,,,,
तलब ,और तम्मना किए  बगैर भी ,.. ना बसर ...
..
और .ना ही ख़त्म होती  है ये जिंदगी?????....

Saturday, October 5, 2013

वो ख्यालों के बादल में क्या बुन रहा था...;;;
अपने नए अल्फाजों से जिंदगी--सफ़र लिख रहा था...
खुद ही के हालातों की जिसे खबर ना थी  अब तक,,
औरों से अपनी सुन,,’’ परछायिओं से बचने वो चला था..!.
रोज़ टूटते कहती थी जिंदगी,'' बरबाद  ना हो किसी की खातिर;
उसी कशमकश  के समुन्दर को ,अब थामने वो चला था..!!
लेकर, उन्ही बीते पलों को धुंधला करने की ख्वाइश में,,,
उम्मीदों से परे,'तम्मना लिए सफ़र को पाने वो चला था..!
कभी  ज़हन में रह गए  जो अनकहे वफ़ा के किस्से,, .,
अब नए अंदाज़ से फिर उन्हीं का आगाज़ कर रहा था...,;
अब कभी ज़रा ना कदम डगमगाएं इस नए सफ़र में,
...
जिन चाहतों  के साथ रहगुज़र में  ‘वो बसने चला था!!!!!!!