Saturday, January 31, 2015

वो लफ़्ज़ों में फँसाने ढूँढ़ते ..,
कब लम्हों में ज़माने गुज़ारते…,
वो कब आँखों के हँसते इशारे,
कब  जानभूज़ के शांत में यूँ गुनगुनाना,
वो हर वक़्त की ख़ामोशी की चाहतें..
वो
फिर रूठना,,,हर बात पे..;
वो बेवजह की शिकवे-शिकायतें.,
हर बात पे यूँ फिर मानंना…,
वो सब भूल कर यूँ करार रहा....
वो ही पूछतें हैं आज बेखबर ..
...
कहो..,''वफ़ा करोगी क्या तुम सदा???
 
गए दिनों जो वो एक हक़ रहा..,
वो भरोसा ना जाने क्या हुआ...;
उम्मीदों से परे..'वो अनकही बातें ..
वो ख्वाब,,,पल,वो चाहते,,,,को क्या हुआ...
जो सफर गुज़रा  यूँ साथ साथ...
एक पल ही में  वो ख़ाक़ हुआ....
..
जब पूछ बैठे अचानक वो...'कहो आज कैसे आना हुआ???
यूँ खुद को दिलासा दें या तौबा उस भरोसे की..
आज वो हैं ... अपना वहीँ पे ....
पर .' मेरा ना मुझ में अब कुछ रहा......????

Wednesday, January 21, 2015

यूँ हताश कभी,,, कुछ भूले से ही सही,,....
वो ज़हन में उथल-पुथल करते अलफ़ाज़...

वो सिर्फ 'उसके-मेरे बीच दरमियाँ....
रही 
जो एक इल्तज़ा.,हो किसी 'रहगुज़र का साथ.;
दिल चाहे कि अब उनके मायने बदल जाएँ,,; 
'कि कोई रहमराज़  ना मिलता....!!!...
धुंधला हो चुका हर बीता सफर जो गुज़रा.,
अब बेज़ार,,बेज़ान ना रहा दिल अपना...;    
साये से अब तार्रुफ़ हो चुका बेशुमार अपना ,,
तन्हाई का ख़ौफ़ हरसूँ न सताए इतना..; 
अब खुद और सिर्फ उस  'खुदा से  अपनी कहकर
रहे 
ना फिर हरदम अब ये शिकवा...
कि कोई रहमराज़  ना मिलता....!!!...
उम्मीदों से परे,'..'अब क्या दोस्तों-रक़ीबों को आज़माए;
ना छोड़ेगा साथ जो कभी चिरोगों में भी..;

आरज़ू बस!!! साया  ही मेरा रहनुमां बन जाए 
ऐतबार कर यूँ किसी पे भी थक हार …;

.....ना दिल ये आवाज़ 
कभी फिर दोहराये..,
......'कि कोई रहमराज़ ना मिलता...... :)!!!  

Tuesday, January 13, 2015

हरसूँ बिखरते ये कुदरत के हसीं जलवे,,
वो ठहरी ओस की बूँदें...
ये सीत,,...वो कोहरा,,सिहरन,,
सुबह की हलकी लालिमा लिए
कानो से दिल में उतरती-मचलती 
साएं -साएं  गूँजते हवा के थपेड़े,
होठों की जमती ठिठुरन ..
वो हर एहसास के साथ यादें...,
वो अपने दायें-बाएं का खालीपन,
ज़ुबाँ पे भूला-बिसरा  गीत,,,
गीत के साथ सफर के नज़ारे
उम्मीदों से परे,’हैरान आँखें, ज़ज़्बात,,,
कि देखे , सोचे और क्या-क्या...?
वो हर तमन्ना के साथ आती शाम...
वो शाम के ख़्वाबों में बसे तुम,,;
मुसलसल, वो आँखों की चमक,
तमन्नओं से भरता दिन भर का खालीपन..
उस खालीपन को मुकम्मल  करते 'तुम'
वो ढलती शाम को ओढ़े आते ख़्वाब...,
एक दिन भर की ठंडी सीलन के साथ,
असफ़ज़ाई हकीकत लिए सिर्फ……’सिर्फ मैं और तुम.......!!!