Thursday, November 28, 2013

वो दिन के चहकते उजालों,,,,'उन शाम के खौफ अंधेरों में .....,
वो अंदर का सहमा सा चेहरा,...’अपनी तन्हाइयों से बात की है;..
बेसबब सन्नाटों में शोर इतना,.'अक्सर   सुन पाते दिल की कुछ नहीं!
ज़िंदगी ने सब कुछ है दिया,...एहसास क्यों अब होता तक नहीं....;?
उसको क्या खबर मेरे दिल की,...'क़ि अब तक उसके बगैर,...;
ज़िंदगी तो अब तक कट रही है,.. लगता है,'जिया कुछ नहीं??
कभी ख्यालों में आया ,,कि उसके सिवागर मांगू...
हाथ तो दुआ में उठेंगें ,..ज़हन में होगी अब दुआ कुछ नहीं...!!!
उम्मीदों से परे',,वो रतजगे अब कर लिए हैं जो कबूल,...
चाहतों में कभी एक पल का जगनालगता अब कुछ भी नहीं???
देखे गर कोई मोहब्ब्त से,...जाने दिल भी अब धड़कता है,'कि नहीं?
इसका सबब भी इन दिनों अब खुद पता लगता ,.. कुछ नहीं..??
ना जाने क्यों ढूंढ़ते फिरते हैं,..परछाईओं में कहानी अपनी....
तन्हाइयों से गुफ़तगू के सिवा,...;....,'रहा जब कुछ भी नहीं !!!!!
तिस पर भी,' इस ज़िन्दगी के खट्टे मीठे  पन्ने  पलटने के  बाद...,
तन्हाईओं से परे भी,'..एक चाहत ज़हन में हरदम हुई है ,.;
उम्मीदों से परे भी ,'छूती है बेख़बर ,जो मुझे हल्के सरग़ोशी से..;
...'ज़िन्दगी के वही पन्ने पलटने  के बाद ,'महसूस हुई है ,...;
तो,','ए ज़िन्दगी !!  कि अब और अभी से नया तज़ुर्बा करें....
......,कि,'दिल अब भूलना चाहता है ,'वो रुख़ी तसल्लियाँ और पुरानी कहानियाँ ...... !!!!??


Monday, November 18, 2013

आज ज़र्ज़र हालत में एक ख़त,’वो सूखा गुलाब मिला;
वो बिखरी सी ‘एक ख्वाहिश,’.कुछ याद दिला गया!!
कभी
 
मोहब्ब्त में उसने  किये थे जो हमसे वादे,,,
आज पछताते हैं,,'जाने क्यों उन पर बेधड़क ऐतबार किया?
ना  चाहते हुए भी , जिन वादों को भूल ना पाये हम;
फ़क़त,,
'
तन्हा, ‘.खुद से ही सिर्फ इंतज़ार किया ??
एक वफ़ा  की चाहत में  ज़ख्मी हुई कितनी वफ़ाएँ अपनी;
मासूम
 
सा लफ्ज़ है मोहब्ब्त,’सदायें ना जाने कितनी दे गया?
शौक
 
नहीं है तन्हाई का,' जिसे अब हमसफ़र बनाये हुए  हैं;
तोहफा ये बड़ी शिद्द्त से,’मोहब्ब्त में वो हमको दे गया!!
उम्मीदों  से परे’,हिम्मत नहीं इस ‘गुनाह को दोहराने की,,,;
..तौबा
 
इस दर्द से ,जो ज़िंदगी में हमे बेहाल कर गया...!!!??




Wednesday, November 13, 2013

जब आता था 'जन्मदिन मेरा,,तो 'वो मुझे बहुत याद करती थी,
लाखों बार ,दुआएं,,सदाएं,,,शुकराना,..कभी वो अदा करती थी.!!
शुकराना यूँ,कि, उसको 'माँ' खिताब..पहले मैने  नवाज़ा था .,
वक़्त रुक जाता था,'जब वो जी भर के उस दिन गले लगाती थी
ये सब सोच ,जाने कहाँ से..दो आंसू मेरे जन्मदिन पे छलक आये
…..कि वो अच्छी 'माँ अब कहाँ से लाएँ..????
...
यूँ तो दिल को  समझाने के लिए,... वो हर तरफ मुकरर है !!!;
फिर ना जाने क्यूँ ,भारी मन से बार बार वही ख्याल आयें..???.
काशउम्मीदों  से परे  ख्वाब में ही सही,'छूकर मुझे फिर बहला दे..
"देख, मैं आस-पास ,यहीं -कहीं हूँ,..'यही,,,,यकीं दिला दे,'..????? 
तभी,अपने कानो में; माँ' सुनते ही जैसे सारे मरहम कब धुल गए;
कब उन बीती यादों  को मुस्कराहट भरे,अरमानो के  पर लग गए.!!
..
जैसे ही माँ अक्स में कब वो आकर मुझसे सिमट गए,,,;
कब 'उसको  शुकराना में ,'एक बार फिरमेरे आंसू दोबारा छलक गए..