Monday, May 20, 2013

अपने.....
रिश्ते,...अपने इर्द-गिर्द के रिश्ते,... कुछ दूर के कुछ पास के…..सिर्फ हमारे.. लेकिन...,,,,,.....
जिंदगी भर कुछ अजीब सा ही रिश्ता रहा-सिर्फ अपनों से,...
बेवजह नफरत - कभी वजह मिली, अपनेपन का एहसास.!
किसी अपने के किये वो उम्मीद से परे वादों की ऋतु अलविदा हुई.....
हर बात  कहने - सुनने, रूठने - मनाने को जैसे चुप सी लग गयी.!!
मिलना- बात करना तो अब दिन के ख़्वाबों में  ही रह गए,,
वो दिल के रिश्ते तो बस अब यादों और कागजों में ही रह गए!
शायद जहाँ रिश्तों में गरमाहट और जटिलता ना हो,,,
वहां, अपने दिखते तो हैं, पर अपनापन नहीं दिखता ????
अब तो, जब कभी भी चोट और दर्द का एहसास होता है,...
तब यही लगता है कि, इस भीड़ में कोई अपना जरुर  है!!!
तो तुम सब अपनों कोअपनाना कहूंतो और क्या कहूं??..
क्योंकि एक साथ इतने दर्द में भी... मुस्कुराना तक सिखा दिया.!!!!



Monday, May 13, 2013


आज सुबह की ख़ुशबू के एहसास से भरा हुआ दिन है,
पर क्यूँ हर दिन यही लगता, कि बस गुज़रा हुआ दिन है?
लगा कभी कि सिलवटों से भरी है सारी उम्मीदें,
और यूँ कि शिकन तक भी नहीं है एहसास में!!!
कुछ दूर उसके साथ चलते अचानक एक मोड़ पर, लगा,
अकेले अब कहाँ जाएँ, कि खुद भी हम अपने साथ नहीं!!
इश्क करने पर दिल को ये एहसास और इल्म हुआ है कि
दुश्मनी मेहरबान होकर निभती है,
दिल लगाने के बाद!!
इन गलियों में उम्मीद से परे ‘वो रात के सन्नाटे’,,,
मुझको इस बात का रोज़ एहसास दिलाते, कि.....
अब रोज़ कौन इस घर की देखभाल करे,,,
जहाँ जब चाहे ख़्वाब चूर चूर हो जाते !!!!!!!!!!!!!!!



Tuesday, May 7, 2013

ऐसा लगा आज कि ,अब  आँख बंद कर ,….
भरोसा किस पर करें ,हर शाख पे उल्लू बैठा है,,,,!!!!!!!!!
यूँ तो जिंदगी को गुजारने के लिए किसी बहाने की ज़रूरत नहीं होती,..क्योंकि खुशियों के चलते जो गम मिलते रहते  हैं, एक तजुर्बे के साथ गुज़र -बसर तो चलती ही रहती है..... लेकिन ख़ुशी के उन पलों पर एक गम का पल कब हावी हो जाता है,...एहसास ही नहीं होता,,,,,,तब भरोसा, दोस्ती,
मोहब्बत्त और रिश्तों में असल फर्क का इल्म महसूस होता है,  ...लगता है अब सब अफसाने झूठे हैं, सिर्फ एक हकीकत के सिवा!!!!!!!
दुनिया में उम्मीद से परे  ,कोई "एक अपना" ढूँढते ढूँढते,भी
कब  लोग  दिलों से  खेल कर, यूँ ही गुम हो जाते  हैं,,,!??,
.,,,
और;,
फिर उन्ही रंजिशों ,खलिश, हसरतों और दर्द के साथ .....,
जिंदगी न तो गुज़रती है और न ही बसर हो पाती है.,लेकिन ..
फिर भी रह जाते हैं जाने अनजाने,,,भूले-बिसरे कुछ चेहरे,,
और कहीं कोई एक शख्स ,सिर्फ ज़ुबानी किताब की तरह,,,,, !
कि..,कोई तन्हाई में गर हाल-ए-दिल पूछे भी ले तो ....,.
उस पल भरी पलकों के साथ खुद को बिखरा सा पाया है !!!!