Friday, April 18, 2014

आज जो बे-मौसम रिमझिम पानी बरसा..,
ना जाने क्यों आज आँखें पथराईं हैं;...;
पल भी ना लगा 'पलकों को तब ठहरने में..;
यूँ बात ग़र कोई गुज़री याद आई है...!!!
कागज़ की वो कश्ती,'वो बूंदों से चिल्लाना ;

वो ठिठुरते हाथों से बेमक़सद ताली बजाना..,
यूँ कब बचपन से हम-तुम जो बड़े हुए ;
वो माँ-बाबूजी के किस्से कब हमसे दूर हुए;;!!
आया यूँ जब हाथों में हाथ किसी 
अजनबी का...;
फिर उन्हीं रिमझिम बूँदों का ताना-बाना लिए हुए;
वो थाम के आग़ोश में उस ठिठुरन को ..;
नरम अंदाज़ों से दिल को मदहोश किये...,
वो चटकती बूँदें 'तब भीगा सा इश्क़ लगे...
मुसल्सल...'यूँ ज़िंदगी के हम इतना करीब हुए...!!
उम्मीदों से परे वो चहकते मासूम पल..
..'
यूँ हो गए कब, 'दिलकश उम्मीदों से भरे हुए!!!
आज सहरा में वो भीगे फ़ूल नहीं...,
है बस! होठों पे तब्बसुम हल्का सा...;
बारिश में पलकों पे वो छुपी नमी सी छाई है..;
क्या कहें..'अब इस दिल नशीं से आखिर में...;
हम जां-नशीं मोहब्बत वालों पे अक्सर;......
....अब ऐसे भी ज़माने आये हैं......
'कि क्यूँ ये बे-मौसम बरसा,,,जो क़तरा-क़तरा आँखें भर आई हैं.....!!!

Wednesday, April 9, 2014


गए  बीते दिनों से,,,,'आज यूँ लगा कि जैसे..;
ख़ुद को कहीं भूल तो नहीं गया मैं???
अपनों ने जो कभी तन्हा-उदास छोड़कर...
आज फिर आइना देखने को कहा हो जैसे.!!
उसी आईने ने पूछा आज एक सवाल मुझसे;
कब तक यूँ उम्मीद--वफ़ा रखेगा सबसे..;
अभी कुछ अल्फ़ाज़ों में समेटा था मैने तुझे!!
..
कि..'अभी मेरे अक्स में तेरी वो  तस्वीर बाकी है!!!
एहसास हुआ ..'बिखेरने के बाद सिमटने की उम्मीद ;
एक ख़लिश सी शायद इस दिल में बाकी है !!
बे-नाम ख्यालों में,,और होठों पे अनकही ..;
और उस अनकही में भी कुछ  जान बाकी है !!
मैं तो इसी फ़हमी में था....;
...
कि हाथ किसी का कभी हाथ में आने से;
...
शायद दर्द-तन्हाई को मिले फिर नयी ज़िंदगी...
रफ़ाक़त किसी की रास आये..'ये अरमान कहीं बाकी है!!!
उम्मीद से परे...'उन अक्स-ओ-ख्यालों के परे..,  
कभी,,किसी मोड़ पर अब ख़ुद से  बिछड़ने से पहले...;
जान लूँ आख़िर 'ख़ुद को..'इस ज़माने से पहले..,
..कि....ना किसी की तामील  करे अब ये नादाँ दिल...;
कि....'ख़ुद और ख़ुदा' से अभी बेशुमार मोहब्ब्त बाकी है..!!!!