Thursday, May 22, 2014

आज फिर बे-सबब उदास है मन...;
बहुत खिन्न ,,बिखरा-उखड़ा सा है ये;
दिल में जो रहता है अक्सर..
अफ़साना,,वो हुजूम-ए-शौक का;
जाने कब लबों पे उतरेंगे अल्फ़ाज़;
देखकर ज़िंदगी की हैरत-ए-फ़िरदौस का;!!

मगर,,आज भीड़ में भी तन्हा है,.'जी..;
माथे पे सिलवटें...चेहरे पे मायूसी है..
..तमन्ना है,,'चेहरे की किताब से ;
कोई दिल की हर्फ़-ए-ख़ामोशी पूछे;
पूछे कि,'कौन है जो तन्हाई में डरा रहा है;?
ख़ुद से भी कितना दूर भगा रहा है.?
ख़ुश्क आँखें ऐसे ही नहीं ख़ौफ़ खाती हैं..;
तन्हा होकर भी अकेले की आदत क्यों डराती है?
भीड़ से भागें या हुज़ूम हो अपने-बेगानों का
या हिचकियों के लिए पूछे पता किसी मयख़ाने का ??
चेहरे की सिलवटें भी यही कर रही हैं सवाल..
कि ज़िंदगी' जिसने हमें ओढ़ा है ख़ुद से ज्यादा..;
,,हैरत,..तन्हाई से घिरे क्या यूँ ही गुज़र जायेगी???
...'या उम्मीदों से परे' वज़ह कभी इस बरबस मन की..;
'बेवज़ह किसी दिलकश की आहट से भी गुनगुनाएगी ????

Thursday, May 15, 2014

...'एक उमर हुई ख़ुद से ज़ुदा हुए ...,
कुछ कही,,अनसुनी ,,,वो गुमशुदा आवाज़ें..;
एक 'जुनूँ' अब सबसे ज़ुदा चाहता हूँ....!!
वो 'आलम-ए-तन्हाई ख़ुद पे जो बरसा...,
अंदाज़-ए-ज़ुदा' वो गुज़रे पलों का...;
दोबारा वो 'एहसास-ए-सुक़ून चाहता 
हूँ..!!
पलभर की हकीकतें, वो असफ़ज़ाई ख्वाब..,
तस्वीर के नए रंग घुलें अब मेरे जुनूँ से...;

उन्हीं ख्यालों की अब तामीर चाहता हूँ..!!
दोस्तों की दुआएं रहीं जो बेशुमार मुझपे.,
मिला जो हमसे,,,दिल से हो गए हम..;
रक़ीबों की अब इनायतें भी चाहता हूँ!!
जिसका ज़िक्र तलक़ ना हो जुबां-ज़हन में..,
ख़ुद से बयाँ हो जो, 'एहसास-ए-तरन्नुम'.;
वो अलफ़ाज़,,'वो मायने मुककरर चाहता हूँ!!!
बरसों की घुटन से जो दे रिहाइश मुझे..,
उस ख़्वाबीदा ज़िंदगी की रोशनी से परे..;
..किसी जां-नशीं से उसका पता चाहता हूँ..!!
'उम्मीदों से परे,,'पर लगाने का मन है..,
बरसों के 'काश 'को 
विराम देने का मन है..;
,,कि तकाज़े बग़ैर अब ज़िंदगी जीना चाहता हूँ...!!!!

(ख़्वाबीदा--सोई हुई)

Wednesday, May 7, 2014


'वो उनसे जब मुलाक़ात हुई आज' ,,
..चेहरे  में था छुपा अनकहा अफ़साना सा,;
कब फिर नज़रों से नज़रें बे-नक़ाब हुई.;
यूँ बरसों से पली ख़ामोशियाँ बे-ज़ार हुईं आज'
अज़नबी है अभी'मगर आशना सा लगे मुझे
छुपी नज़रों से अक्सर झांकता देखे जब मुझे
तरन्नुम अल्फ़ाज़ों का जोड़ नहीं रहा था आज'
नज़रें चुराकर वो,'मुख़्तसर सी गुफ्तगू उसकी
यूँ लगा,,ग़र कोई ताल्लुक नहीं उसका मुझसे.;
अंदाज़--ख़ामोशी  बयाँ  करेगा भी वो कैसे...;
ग़र बा-इरादा दिल शरारत करना चाह रहा हो आज';
आज मिले हैं तो हम भी किस्सा--फ़िराक क्या कहें.,;
लम्हे जो चंद सुकून के मिले ,'उसकी- अपनी सिर्फ सुने,'कहे.;
कभी रंगों की रफ़ाक़त ,,कभी खुश्बू का मौसम करीब लगे..;
उम्मीदों से परे,,'ये ख्वाब हैं या हकीकत से कुछ परे है आज'.....!!
...
कि ना-मुमकिन सा लगे इस दिल को समझना-बहलाना आज' ;;
....कि दिल चाहे कर ले सुलह वक़्त से चंद लम्हात की आज'..;
.,'कि ये फ़ितरत-ए-नादाँ अपने ही दिमागी मिज़ाज़ से बहना चाह रहा है आज'.....!!!!