Tuesday, October 28, 2014

कुछ ऐसा हुआ ख़ास इस बेखबर दिल के साथ
ओस की ठहरी बूँद की तरह तर्रनुम लिए,,,
उस तब्बसुम से मुलाक़ात हुई...
..जादूगरी का तिलस्म था उसकी बातों में;
या कोई एहसास-ए-कशिश उसकी आँखों में
लगा, 'खामोशी से अल्फ़ाज़ों में बाँधे जा रहा 
हो!
कब ,,कोई उस बिखरी आस, ख्वाबों को
उस तन्हाई  ,,उस ना-उम्मीदी को,..
रेशम के तारों से सुलझाता जा रहा हो,,,;   
..कि बीते सवालों में भरी उन रंजिशों को
,
आधी अधूरी ,,,उन ख्वाइशों को ..;

धीमे अंदाज़ से मेरी ज़िंदगी में पिरो रहा हो !
अक्सर जो निकलती रही आह जो गुज़री यादों की
वो टूटती-जुड़ती दिल की पैबन्दकारी को   ..
वो अपनी उस निगाह-ए-नाज़ से बहला रहा हो !
सदियों से ठहरी उन तमाम हवाओं का रुख़
उम्मीदों से परे 'सरगोशियों में ख़ुशनुमा सा लगे ..; 
कि  दिल जो 
कभी तरसा जिस रहगुज़र  के लिए 
आती रुत में जाने कितने बहानो से तार्रुफ़ कराने जा रहा हो.........