Sunday, June 23, 2013

‘दुआ…….  
कभी कभार 'कोई' शिद्दत से  उस दुआ की तरह लगता है,
हाथ जो  बारिश की ख्वाइश में सख्त गर्मियों में उठते हैं !!!!
जब तक दिल चाहे तो जुबां तक में असर नहीं होता,…
उमीद्दों से परे, भी मुहब्बत तक की दुआ कबूल नहीं होती!! 
आज फिर मुझे उन दुआओं के सहारे की सख्त जरूरत  है !
काश ! कि आज मुझे कोई सिर्फ दिल से ही दुआ दे!!!
क्योंकि दुआओं को मुझसे अजीब सी मुहब्बत्त है,
वो कबूल तक नहीं होती ,मुझे खोने के डर से!!!
लेकिन कभी जिंदगी भर मुस्कुराने कि दुआ मत देना,...दोस्तों,,
शायद,,,,पल भर मुस्कुराने की सज़ा भी मालूम है मुझे!!!!!
क्योंकि,,,,जीने की दुआ और तम्मना अब कौन करे,,,???
ये दुनिया हो या वो,,दर्द के साथ,'ख्वाइश दुनिया की कौन करे?



Monday, June 10, 2013

ये ज़रूरी नहीं की कभी कह भी देते अपनी चाहतें ,,,,क्योंकि 
ज़ाहिर करने की एक और जुबान होती है तमन्नाओं की !!!!!
जिंदगी,
के खट्टे -मीठे पन्ने पलटने के बाद ये इल्म हुआ,. कि....जिंदगी एक चाहत, तमन्ना ,एक सपने ,छल ,उल्फत, नफरत ,एक शर्त के सिवा कुछ भी नहीं है,....
कोई मिला…कोई बिछुर गया,लेकिन जिसे भी शिद्दत से पाना चाहा,...करीब तक लाना चाहा,, वो’..या तो वो तकदीर के हाथों फिंसल. गया...या आने से पहले ही सिर्फ शर्तों के हाथों मुकर गया,,जैसे की अब लगता है..हर रिश्ते  के मामले में गरीब हो गए हम ???
कभी जिन्हे हकीकत में भी पाना चाहें वो ख्वाबों में  भी नहीं मिलते,....चाहे वो रिश्ते अपने हो या अपने बनाये हुए…???
और आजकल की जिंदगी’ तो जैसे शर्तों के अधीन हैं ,...शर्तों से ही जी जाती है क्योंकि ...बिना शर्तों के या तो ..रिश्ते बिखरते  हैं, या फिर खुदा और फ़रिश्ते मिला करते हैं....!!!
फिर भी ,..ना जाने…
सब जानते हुए भी,…उम्मीद्दों  से परे’ …
'किसको और क्यूँ,खोझ्ती रही,.और खोज रही हैं ये नज़रें ..जिस पर ये  दम निकले…..,
जबकि हर कोई अपनी मैं,….मुक्कद्दर,…और अपने साए.. के साथ,,,
तन्हा ही इस जीवन से चले !!!!