Thursday, February 28, 2013


ये सोच आज पता नहीं क्यों आंखों में दो आंसू आये
कोई ये बताये अब ऐसी अच्छी 'माँ' हम कहाँ से लाये!!
जाग जाग रातों में जिसने हममे पाठ पढ़ाया
दुनिया के सामने एक अच्छा इंसान बनाया
सुनाकर कहानियाँ अच्छी अच्छी जिसने रोज़ सुलाया
सेवा में हमारी जिसने दिन रात एक बनाए
ऐसे कोमल भाव आज तक हमने किसी में पाए .....
जिसके लिए हरि भी झोली ले,,, द्वार पर आये
आज वोनहीं रही बीच हमारे,ये सोच हर पल मन घबराए,
और वो मेरी हिम्मत ,मेरी ताकत,वो स्पर्श अब कहाँ से लाऊं
कोई ये बताये अब ऐसी अच्छी 'माँ' हम कहाँ से लाये!!

अपने जीवन में मैने अपनी माँ का रिश्ता अपने लिए उम्मीदों से परे ही देखा ,शायद एक बेटी हूँ मैं,..लेकिन कभी-कभार आँखें उनकी सबके लिए उम्मीदों से भरी होती थीं ,..भले ही वो चाहे कुछ नहीं कहती थीं ,..पर आज जब 20 वर्ष बाद जब मैं उनकी जगह हूँ,तब वो आँखें याद करती हूँ ,जब हम उनकी उम्मीदों पे खरे नहीं उतरते थे ,और तकलीफ उनको होती थी ,...पर इसका मतलब ये नहीं हुआ की हम रिश्तों या भावनाओं से दूर रहे या स्वार्थी हों ,..वरन मेरे ख़याल से उम्मीदों से परे परमार्थी हों !!!!!......जिसमें सही में एक सुकून , मासूमियत और भावनाएँ अपने और दूसरों के लिए बरकरार रहे……..
 

Friday, February 22, 2013


ज़िन्दगी  के खट्टे मीठे  पन्ने  पलटने के  बाद
आज  कुछ दिल की बात कहने क़ी  चाहत हुई है ,
उम्मीदों से परे भी है,,,, एक मेरा जहांन.....
ज़िन्दगी के वही पन्ने पलटने  के बाद मालूम  हुई है !!!

ज़िन्दगी  के  शोर  , तनहाई  और घर - घ्रिहस्थी की आपा -धापी   ,रिश्ते  नातों  की गलियों ,और  ज़िन्दगी  में  क्या  खोया क्या पाया  से आगे , सोच के रास्ते  पर  कहीं एक ऐसा  नुक्कर  आता  हैजहाँ इंसान  एकाकी  हो जाताहै , उसे सिर्फ ख़ामोशी  और तन्हाई  से ही प्यार हो जाता है .वो कभी कभार  भी भीढ़  में शामिल   नहीं होना  चाहता !!!!!! .
अपने खुद  की  ‘मै'  की कशमकश  टूट  जाती है … और  सब  शब्दों  को जोढ -तोढ़कर ,…….सब  दिल का  अंतरंग  लिखने  को मन  करता  है …………….आज  वही  सारे  शब्द  इक्कठा करने  में लगी हूँ   …ताकि वो  भी  मेरे  दिमाग की तरह उलझे ना रहे  ….जो बात बात पे  दिल -दिमाग  में  उथल -पुथल  ना मचाएँ ……जब तक  ये  कागज़  पर  नहीं उतरेंगे ,लगता  है ,….हर  वक़्त  शोर  मचाते  रहेंगे ….. क्योंकि अब  इस आसपास  के  सन्नाटे को सही  में इन  शब्दों के शोर  की भी आदत नहीं रही ,…..!!!!!!
दिल की बातें ज़ारी रहेंगी ……जिंदगी के  सारे  खट्टे  मीठे  लम्हों और तज़ुर्बों  के  साथ …. वो  लम्हें , वो     ना -उम्मीदें  ,,, जिन्होंने  अब तक  वही सवेंदल्शीलता  कायम रखी और  जीना  सिखाया ………कि उम्मीदों  के  परे भी  एक जहाँन  है ……जो  सिर्फ अब मेरा  है , …!!!!!!!!




कहतें हैं उम्मीद पे  दुनिया  कायम है ,...पर  खुद  कि दुनिया , और अपनी खुद की सोच  !!!!लेकिन जब उस दुनिया में हम किसी  भी दूसरे को शामिल करके उससे अपने लिए उम्मीदों और इच्छाओं का  का पिटारा बना लेते हैं ,....और जो जब  पूरा ना हो तो हम सिर्फ अपने को ही तकलीफ़ देते हैं यानी कि जिंदगी जहन्नुम !!!

लेकिन जैसे कि  एक अनकहा  स्पर्श ,....वो चाहे माँ का हो ,या किसी बच्चे का ...या किसी भी अपने प्रिय का हो,तो सारे गम भुला देता है और ख़ुशी हज़ार गुनी कर देता है!,....रिश्ते जो शुरू में तो मासूम होते हैं ,अपने ऊपर निर्भर भी कर लेते हैं और जब वो गठित हो जातें हैं ,तो ना जाने कहाँ अपनी गरिमा खोने लगते हैं , अजीब गरीब आकार लेने लगते हैं क्योंकि निर्भरता और उम्मीदों की कतार सटीक और भारी भरकम होने लगती है ,,,,बिना ये सोचे समझे कि ईश्वर ने हर इंसान का व्यक्तित्व  और वयवहार अलग बनाया है ..... पर इन सब बातों का एहसास बहुत दर्द के साथ  होता है और दर्द आकान्शाओं ,उम्मीदों से ही पनपता है ,तो क्यूँ ना इसके परे आज वो जहान बनाया जाये,  जिसमें वो अनकही ,अनचाही ,अनसुनी ,अनछुई ..अनदेखी भावनाएँ और बातें हों जो  दिल में सुकून और अन्दर की मासूमियत बरकरार रखे क्योंकि दो पल की जिंदगी में ख़ुशी और गम ,.....दोनों ही हमारे हैं ,किसी और से उधार के नहीं , !!!
क्या खोया क्या पाया जग़ में 
मिलते और बिछुरते मन में 
अब किसी से मुझे नहीं शिकायत 
यद्यपि छला गया पल पल में !!!!
ये किसी के कहे अल्फाज़ यहीं पे खत्म नहीं होते ,बल्कि शुरआत है उन अल्फाज़ों की ,जो कई सालों से मेरे इर्द गिर्द सबके होते हुए भी अन्दर एक उलझन कर रहे थे .......और अब बिना किसी उलझन के सुलझ सुलझ के निकल रहे हैं ,,,,,,एक खट्टे मीठे तजुर्बे के साथ ,!!!!!!!!