Sunday, May 10, 2015

वो "उमीद्दों से परे हाथ".,, 
“एक अंधे की तरह उसका हाथ पकड़ के चलते हैं हम ,
         एक उम्मीद, भरोसा लिए .. ताह ज़िंदगी जूझते हैं हम!
अपने जीवन में मैंने अपनी माँ का रिश्ता हमारे लिए उम्मीदों से परे' ही देखा.,लेकिन कभी-कभार उनकी आँखें सबके लिए उम्मीदों से भरी होती थीं ,भले ही वो चाहे कुछ नहीं कहती थीं
पर आज जब २३ वर्ष बाद मैं उनकी जगह हूँ तब वो आँखें याद करती हूँ ,कि जब हम उनकी उम्मीदों पे खरे नहीं उतरते थे और तकलीफ उनको होती थी..'वो आँखें जिनमें सही में एक सुकून,,एक मासूमियत,,,एक शिक्षिका और अनगिनत भावनाएं अपनों के लिए और दूसरों के लिए हमेशा बरकरार रहती थीं.. एक धैर्य ,विश्वास के साथ!!!!!
एक अनकहा स्पर्श ,,,,बेइंतहा याद करते हैं इस स्पर्श को....
कभी एक मीठी सी मुस्कान के साथ,तो कभी एक कड़वाहट के साथ भी…; 

मेरे बचपन से कई सालों तक  मेरे सर पे एक मोहब्बत भरा हाथ था,,
गम-ख़ुशी में,प्यार-तकरार में,अंधेरों में जो हाथ थामें मेरा हर घड़ी साथ था,
कभी भाग जाए नींद अचानक,'अपने ही कमरे में तन्हा मुझे ख़ौफ़ लगता;
एक आवाज़ जिस पर यकीं था.,'मुझसे चुपके से तब  कहती ,..'डरना नहीं...;
"देखो मैं पास हूँ,यहीं -कहीं हूँ,...ऐसा लहज़ा हुआ करता था ....!!!!!!!
..उसके इसी लहज़े से सारे ज़ख्मों को मलहम तब लग जाया करता था,,...
लेकिन जब आज मैं  तनहा ,
 परेशान हूँ ..’कितनी रातों की  जागी हुई हूँ,
आँखें भी जैसे पथरा सी गयी  हैं, और जिस्म भी दर्द से चूर है...
ज़हन सोचों से कशमकश में है और दिल ज़्यादा ही रंजूर है?????
और आज ,अब वो हाथ मुझसे कोसों बहुत ......'बहुत...बहुत ... दूर हैं '...!!
तब भी ना जाने क्यूँ..'इसी इंतज़ार में हूँ कि माथे पे मेरे इक हथेली धरे.,
धीरे से लहजे में मुझसे कहेंगे कि 'ऐसे घबरा मत"..देख मैं तेरे साथ हूँ"..
शायद ऐसी बातों पे शायद मैं यक़ीन ना करूँ,,पर बहल ज़रूर जाऊँगी,,,,
और फिर....कब उसी हाथ को थामे सो जाउंगी................................!!
आज जिनकी जननी ना हो के भी  ,,है वो बीच सदा किनारे ...
...
'आके अपने हाथों से..'कब छू कर भर देगी सब ज़ख्म हमारे   
उस
 माँ को नमन सदा करता रहेगा ये दिल हाथ पसारे....

…..कि बनाये रहे सदा वो अपनी छाया  ..बीच हमारे....!!!
.......Happy  Mother’s Day…..!!!!