Friday, January 24, 2014

कल रात..अचानक तब्ब्सुम से मुलाकात हुई..,
अंदाज़ा कुछ ऐसा,,'हर  पल तक हुआ..;
..कि जादूगरी थी या कोई कशिश उसमें.;
..
या फिर एहसासों का तिलस्म मुझमें ;
कि,'कोई अल्फ़ाज़ों की डोर में बाँध रहा हो!!
जैसे कि,बिखरी हुई आस पे कब से...,,
रेशम की  तरह कहानी कह रहा हो!!!
जैसे कि बीती यादों, दर्द ,सवालों में उलझी..;
हर रंजिश पिरो-पिरोकर सुलझा रहा हो!!
कि छम से उन अल्फ़ाज़ों के तिलस्म में;
दिल की हर गिरफ्त--ख़लिश मिटा रहा हो!!
अक्सर निकलती थी 'आह की सदा' दिल से;;
वो इस एक निगाह--नाज़ को बहला रहा हो!!
भूले से ठहरी उन तमाम खुशनुमां हवाओं के रूख़;
उम्मीदों से परे'..ख़ामोशी में भी अब तक जैसे कोई गुनगुना रहा हो.........!

Friday, January 10, 2014

वो ख्यालों के पल में एहसास-ए-रूबरु होके आना...;
'और दस्तक दिए बग़ैर..,,'कब छम से उड जाना...;
उस पल से हर पल..'ज़िंदा हकीकत होती ये ज़िंदगी!!
ना जाने क्यूँ एक निग़ाह को हरदम तलाशती हुई ..;
बिखरी, तन्हा, उन तरसती तमन्नाओ के साथ...;
पाने की चाहत.,'कभी खोने के मलाल जैसी ये ज़िंदगी!
आने-जाने की 'दो तारीखों..,'एक मुक्क्मल डर लिए;
लगता है,,'यूँ ही 
कहीं फ़िक़र-ए-फ़नाह ना हो जाए....;
..ख़ुशनुमा नज़ारों से..,,'ज़न्नत भरी ये ज़िंदगी!!!
नहीं अब तमम्ना कि यादों के पुल और ढोता चलूँ..;
जो पीछे रह गए रहगुज़र ,पुकारता उनको अब चलूँ..;
अरमानों के सफ़र में..,कहीं फिर ना ठहर जाए ये ज़िंदगी!!
भूले से ग़र..,सुकूनी हवाओं का रुख़ कभी हो मेरी तरफ....;
'उम्मीदों से परे..रहेगा उसी एक झोंके का इंतज़ार...;
उसी पल में उस एहसास की इबादत करने लगेगी ये ज़िंदगी!!!

Wednesday, January 1, 2014

जैसे असफ़ज़ाई ख़वाबों से निज़ात पाना मुश्किल है,’उसी तरह इस निश्छल दुनिया से,जो की एक असफ़ज़ाई ख़वाब की ही तरह है, मुश्किल तो है...’पर नामुमकिन नहीं!!!....
..तो ख़्वाबों से हक़ीक़त की तऱफ क़दम ज़िंदगी में बढ़ाना ही सिर्फ हक़ीक़त और उम्मीदों से परे है....
भावनाएं इंसान को अंदर से एक बार को  कमज़ोर और हताश बनाती हैं..’शायद एक बार को झकझोंर भी देतीं हैं ....हालांकि इन्ही भावनाओं में  ज़ज़बात ,दर्द ,मोहब्ब्त ,नफरत, जीने की ख्वाइश, मक़सद, छल, झूठ, रिश्ते, दोस्ती ..सब छुपा है, ..और मज़े की बात है … ‘ये ही सब उस कोमल  ह्रदय और पुलकित चंचल मन को कब अपने ही लिए क्षण भर में ही कठोर कर देती हैं..,एहसास ही नहीं होता और तब..कभी कोई मोहब्बत से कभी पल भर को उस कठोर मन को देखे,.तो आँखें कब नम हो जाती हैं ये भी एहसास पलकें मिलाने पे ही होता है और तब ऐसा लगता है,;...कि कभी हम टूटते हैं  ,..तो कभी सपने....
       और  जाने कितने टुकड़ों में टूटते हैं ज़ज़बात ....
                     हर टुकड़ा लगता है तब आइना हमारी ज़िंदगी का
                    और हर उस आईने के साथ टूटते हैं फिर कितने अरमान !

वैसे तो हर दिन ही नए साल का दिन है,'फिर भी इस नए साल के पहले दिन में उन उम्मीदों से परे,
एक नयी उम्मीद के साथ ठंडी सांस तो भर लें…,कि अब भूले से भी;;


'ज़िंदगी में अब ये अरमान और ना बिखरें  किश्तों में,.....
ग़र कोई हाल भी पूछे ..आँखें भर ना आयें किश्तों में!!!
ना कोई इक भी उम्मीद करें अब कोई अपनों के भी साथ
तभी उसी पुलकित मन , 'इस निश्छल दुनिया से …
……….इस दिल की रौनक रहेगी सदा आबाद!!!'!
....नए साल की शुभकामनाएं!!!