Sunday, December 22, 2013

 'ये ज़िंदगी आज किस मुक़ाम पे ले आयी...
...कि वो दिलकश नज़ारे कहाँ गए ???
कि फूल तो खुश हुए ,..जाने वो सितारे कहाँ गए ???
वो दौर..जो ज़िंदगी का नज़रों से निहारते ...
वो निखरे सपनो के होश के धारे कहाँ गए ??
वो तकदीरें ,,,जो कभी ठहरी औस  थी एक पत्ते पे;;
कब फिसलकर पत्ते से ...मायूसी के मारे कहाँ गए.??.
इन सबसे और भी ना हो  जाऊं ,,मैं बिखरा-बिखरा सा..;
कहाँ वो यार,..वो काफिले थके-माँदे कहाँ  गए??
कोई तो  आये कि, सोचेंगे अब उन 'उम्मीदों  से परे...
बेचैन से हो चुके हैं,,इस पले यादों  के  दर्द  से ..;
क्या कहिये कि,'वो अरमान भी इस दिल के मारे कहाँ गए ??

7 comments:

  1. मधुिमताDecember 22, 2013 at 10:01 AM

    बहु्त िदनों केॆ ॆबाद मानिसक उथलपुथल को साघारण शब्दो में विणॆत करने के िलये साघुवाद....

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  2. Well description by words of heart and confused mind ,side by side,nice written.
    Keep it up and carry on.

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  3. Apni Aankhon ko noch dala ha..
    Khwab aya tha phr Mohabat ka..

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    1. ....nice Sher...,...Mohabbt buri hai,,,buri hai mohabbt
      Tab bhi sab kahey bhi jaa rahey hain,..aur kiye bhi jaa rahey hain???
      Thanks for being regular with posts....

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  4. Mohabbat buri nahi he dost..Bura he uska anjam..
    Fir me log kiye jate he.. kyu k.. log he isse Anjaan..

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  5. kya baat ritu behtarin

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